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कवि ओमप्रकाश मेरोठा की कविता

बलात्कारियों पर कविता -

     है इनसे लज्जित हिंदुस्तान -2
बलात्कार करने वालों का अब हो काम तमाम
है इनसे लज्जित हिंदुस्तान -2

छिपे आदमी की शक्लो में कहीं भेड़िए बचना 
इनके ही कारण अब छोड़ा हमने भरोसा करना
निर्मम वहशी और दरिंदे आस-पास रहते हैं
नहीं रहम के काबिल है ये नाग सदा डसते हैं । 
दादा चाचा मामा मोशा सब इनसे बदनाम
है इनसे लज्जित हिंदुस्तान -2

हैदराबाद की ताजा घटना 
नहीं कलेजा कांप उठे तो फिर Op  से तुम कहना
घर में देवी मां जगराता एक सजाई झांकी 
मासूम सी व एक बालिका दुर्गा बन कर जा रही थी
शेर बनाता गबरु लड़का 
बन बेटा शैतान
हे इनसे लज्जित हिंदुस्तान -2

है विक्षिप्त कसाई लोलुप दर्द नहीं ये  जाने
बच्चों और बड़ों में कोई फर्क नहीं वो माने
सुबह कराये कन्या भोजन
शाम को मंशा डोले 
गुमे सज्जन बनकर ढोंगी पहन केसरी चोले 
नोंच नोंच कर खाने वाले नरभक्षी हैवान
है इनसे लज्जित हिंदुस्तान -2

कितने कटुओं और दामिनी और निर्भया होंगी
कितनी मासूमों को वशहत जिल्लत सहनी होंगी
कब हम जागेंगे सीखेंगे मोदी जी बतलाओ
मौत मिले दुष्कर्मी को अब फांसी इन्हें चढ़ाओ
ना पेशी ना सुनवाई हो , पहुंचाओ शमशान
है इनसे लज्जित हिंदुस्तान -2

बलात्कार करने वालों का , करदो काम तमाम
है इनसे लज्जित हिंदुस्तान -2

कवि ओमप्रकाश मेरोठा 

छबड़ा जिला बारां राजस्थान



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