कलम लाइव पत्रिका

ईमेल:- kalamlivepatrika@gmail.com

Sponsor

अक्क महादेवी की कविता वचन की व्यख्या Akk mahadevi ki kavita vachan vyakhya

वचन कविता कक्षा 11/Vachan kavita class 11

अक्क महादेवी की कविता वचन / Akk mahadevi ki kavita vachan

वचन की व्याख्या/ vachan ki vyakhya

1.
हो भूख ! मत मचल
प्यास, तड़प मत हे 
हे नींद! मत सता 
क्रोध, मचा मत उथल-पुथल 
हे मोह! पाश अपने ढील
लोभ, मत ललचा
मद ! मत कर मदहोश
ईर्ष्या, जला मत
ओ चराचर ! मत चूक अवसर
आई हूँ सदेश लेकर चन्नमल्लिकार्जुन का

सन्दर्भ :-  प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्य पुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित ‘वचन’ से लिया गया है। जो शैव आंदोलन से जुड़ी कर्नाटक की प्रसिद्ध कवयित्री अक्क महादेवी द्वारा रचित है। अक्क महादेवी शिव की अनन्य भक्त थीं। 

प्रसंग:- इस पद में कवयित्री अक्क महादेवी सभी इंद्रियों पर नियंत्रण का संदेश दे रही हैं।

व्याख्या:-  इन पंक्तियों के माध्यम से अक्क महादेवी इंद्रियों से आग्रह करती हैं। वे भूख से कहती हैं कि तू मचलकर मुझे मत सताया कर। प्यास को कहती हैं कि तू मन में और पाने की इच्छा मत जगा। हे नींद ! तू मानव को सताना छोड़ दे, क्योंकि नींद से उत्पन्न आलस्य के कारण वह प्रभु-भक्ति को भूल जाता है। हे क्रोध! तू उथल-पुथल मत मचा, क्योंकि तेरे कारण मनुष्य का विवेक नष्ट हो जाता है। वह मोह को कहती हैं कि वह अपने बंधन ढीले कर दे। तेरे कारण मनुष्य दूसरे का अहित करने की सोचता है। हे लोभ! तू मानव को ललचाना छोड़ दे। हे अहंकार! तू मनुष्य को अधिक पागल न बना। ईष्य मनुष्य को जलाना छोड़ दे। वे सृष्टि के जड़-चेतन जगत् को संबोधित करते हुए कहती हैं कि तुम्हारे पास शिव-भक्ति का जो अवसर है, उससे चूकना मत, क्योंकि मैं शिव का संदेश लेकर तुम्हारे पास आई हैं। चराचर को इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए।


2.
हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर
मँगवाओ मुझसे भीख
और कुछ ऐसा करो 
कि भूल जाऊँ अपना घर पूरी तरह 
झोली फैलाऊँ और न मिले भीख
कोई हाथ बढ़ाए कुछ देने को
तो वह गिर जाए नीचे
और यदि में झूकूं उसे उठाने
तो कोई कुत्ता आ जाए
और उसे झपटकर छीन ले मुझसे।

सन्दर्भ :- प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्य पुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित ‘वचन’ से लिया गया है। जो शैव आंदोलन से जुड़ी कर्नाटक की प्रसिद्ध कवयित्री अक्क महादेवी/ Akk mahadevi द्वारा रचित है। वे शिव की अनन्य भक्त थीं। 

प्रसंग:- इस पद में कवयित्री अक्क महादेवी ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण का भाव व्यक्त करती है। वह अपने अहंकार को नष्ट करके ईश्वर में समा जाना चाहती है।

व्याख्या:- कवयित्री अक्क महादेवी ईश्वर से प्रार्थना करती है कि हे जूही के फूल के समान कोमल व परोपकारी ईश्वर! आप मुझसे ऐसे-ऐसे कार्य करवाइए जिससे मेरा अह भाव नष्ट हो जाए। आप ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न कीजिए जिससे मुझे भीख माँगनी पड़े। मेरे पास कोई साधन न रहे। आप ऐसा कुछ कीजिए कि मैं पारिवारिक मोह से दूर हो जाऊँ। घर का मोह सांसारिक चक्र में उलझने का सबसे बड़ा कारण है। घर के भूलने पर ईश्वर का घर ही लक्ष्य बन जाता है। वह आगे कहती है कि जब वह भीख माँगने के लिए झोली फैलाए तो उसे कोई भीख नहीं दे। ईश्वर ऐसा कुछ करे कि उसे भीख भी नहीं मिले। यदि कोई उसे कुछ देने के लिए हाथ बढ़ाए तो वह नीचे गिर जाए। इस प्रकार वह सहायता भी व्यर्थ हो जाए। उस गिरे हुए पदार्थ को वह उठाने के लिए झुके तो कोई कुत्ता उससे झपटकर छीनकर ले जाए। कवयित्री त्याग की पराकाष्ठा को प्राप्त करना चाहती है। वह मान-अपमान के दायरे से बाहर निकलकर ईश्वर में विलीन होना चाहती है।

No comments:

Post a Comment