अज्ञेय की कविता की व्याख्या
साँप
साँप!तुम सभ्य तो हुए नहीं
नगर में बसना
भी तुम्हें नहीं आया।
एक बात पूछूँ- (उत्तर दोगे?)
तब कैसे सीखा डँसना-
विष कहाँ पाया?
व्याख्या :-
कवि अज्ञेय जी कहते है हे साँप! तुम सभ्य नहीं हो, तुम नग्न रहते हो और तुम्हारा कोई घर भी नहीं है। शहरों में रहना भी तुम्हें नहीं आता। तुम जंगलों और ग्रामो मे ही निवास करते हो। मैं तुम्हारे बारे में एक बात पुछू ? क्या तुम बताओगे?
सभ्यता और शहरी निवास के अभाव में तुमने लोगों को काटना कैसे सिख लिया है? कवि कहना है कि शहरों में छल कपट होता है लेकिन साँप तो शहर गया ही नहीं फिर उसने शहरी लोगो की तरह दुसरो को चोट पहचान कहाँ से सिख लिया है। तुम्हें विष कहाँ से प्राप्त हो गया। काटना और जहरीलापन तो शहर के सभ्य लोगों की विशेषतायें हैं।अर्थात कवि का कहने का मतलब है कि शहर के लोग दुष्ट प्रकृति के होते हैं। वे सदैव दुसरो को क्षति पहुचाँते है।

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