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हौसलें बुलंद रखों hausale buland rakho

 बुलंद हौसले

विधा : कविता

चलते चले जा रहे,
कुछ पाने के लिए।
मंजिल का पता नहीं,
फिर भी चले जा रहे है।
सोच कर की कभी तो,
हमे मंजिल मिलेगी।
और इसी आशा में,
जिंदगी जिये जा रहे हैं।।

जीवन का लक्ष्य हम,
एक दिन जरूर पाएंगे।
कहने से पहले,
कर के दिखाएंगे।
और अपने जीवन को,
सार्थक बनाएंगे।
और हम अपने,
कामों से जाने जायेंगे।।

बिना आधार वालो ने भी,
दुनियां में नाम कमाया है।
जिन्हें मूर्ख समझा था,
बाद में वो ही महाकवि,
कालिदास कहलाये है।
दिल में चुभ जाती है,
जब कोई बात।
तो फिर सब बदल जाता है,
और फिर जो भी होता है।
वो इतिहास के पन्नो में
हमें पढ़ने को मिलता है।।

जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
21/11/2019

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