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भवानी प्रसाद मिश्र-घर की याद कविता की व्याख्या ghar ki yaad ki vyakhya

भवानी प्रसाद मिश्र-कविता-घर की याद की व्याख्या

Bhavani prasad mishra ki kavita



1.
आज पानी गिर रहा है, 
बहुत पानी गिर रहा है, 
रात भर गिरता रहा है, 
प्राण-मन धिरता रहा है, 
बहुत पानी गिर रहा हैं,
घर नजर में तिर रहा है, 
घर कि मुझसे दूर है जो,
घर खुशी का पूर हैं जो,

घर कि घर में चार भाई,
मायके में बहिन आई,
बहिन आई बाप के घर,
हाय रे परिताप के घर।
घर कि घर में सब जुड़े हैं,
सब कि इतने कब जुड़े हैं,
चार भाई चार बहिन,
भुजा भाई प्यार बहिन,
सन्दर्भ:- प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘घर की याद’ से लिया गया है। इसके रचयिता भवानी प्रसाद मिश्र हैं।
प्रसंग:-  यह कविता जेल प्रवास के दौरान लिखी गई। एक रात लगातार बारिश हो रही थी तो कवि को घर की याद आती है तो वह अपनी पीड़ा व्यक्त करता है।

व्याख्या-कवि बताता है कि आज बहुत तेज बारिश हो रही है। रातभर वर्षा होती रही है। ऐसे में उसके मन और प्राण घर की याद से घिर गए। बरसते हुए पानी के बीच रातभर घर कवि की नजरों में घूमता रहा। उसका घर बहुत दूर है, परंतु वह खुशियों का भंडार है। उसके घर में चार भाई हैं। बहन मायके में यानी पिता के घर आई है। यहाँ आकर उसे दुख ही मिला, क्योंकि उसका एक भाई जेल में बंद है। घर में आज सभी एकत्र होंगे। वे सब आपस में जुड़े हुए हैं। उसके चार भाई व चार बहने हैं। चारों भाई भुजाएँ हैं तथा बहनें प्यार हैं। भाई भुजा के समान कर्मशील व बलिष्ठ हैं तथा बहनें स्नेह की भंडार हैं।


2.
और माँ बिन-पढ़ी मोरी,
दु:ख में वह गढ़ी मेरी 
माँ कि जिसकी गोद में सिर, 
रख लिया तो दुख नहीं फिर,
माँ कि जिसकी स्नेह-धारा, 
का यहाँ तक भी पसारा, 
उसे लिखना नहीं आता, 
जो कि उसका पत्र पाता।
पिता जी जिनको बुढ़ापा,
एक क्षण भी नहीं व्यापा,
जो अभी भी दौड़ जाएँ
जो अभी भी खिलखिलाएँ,
मौत के आगे न हिचकें,
शर के आगे न बिचकें,
बोल में बादल गरजता,
काम में झझ लरजता,



सन्दर्भ:- प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘घर की याद’ से लिया गया है। इसके रचयिता भवानी प्रसाद मिश्र हैं।
प्रसंग:-  यह कविता जेल प्रवास के दौरान लिखी गई। एक रात लगातार बारिश हो रही थी तो कवि को घर की याद आती है तो वह अपनी पीड़ा व्यक्त करता है। इस काव्यांश में पिता व माँ के बारे में बताया गया है।
व्याख्या-सावन की बरसात में कवि को घर के सभी सदस्यों की याद आती है। उसे अपनी माँ की याद आती है। उसकी माँ अनपढ़ है। उसने बहुत कष्ट सहन किया है। वह दुखों में ही रची हुई है। माँ बहुत स्नेहमयी है। उसकी गोद में सिर रखने के बाद दुख शेष नहीं रहता अर्थात् दुख का अनुभव नहीं होता। माँ का स्नेह इतना व्यापक है कि जेल में भी कवि उसको अनुभव कर रहा है। वह लिखना भी नहीं जानती। इस कारण उसका पत्र भी नहीं आ सकता। कवि अपने पिता के बारे में बताता है कि वे अभी भी चुस्त हैं। बुढ़ापा उन्हें एक क्षण के लिए भी आगोश में नहीं ले पाया है। वे आज भी दौड़ सकते हैं तथा खूब खिल-खिलाकर हँसते हैं। वे इतने साहसी हैं कि मौत के सामने भी हिचकते नहीं हैं तथा शेर के आगे डरते नहीं है। उनकी वाणी में ओज है। उसमें बादल के समान गर्जना है। जब वे काम करते हैं तो उनसे तूफ़ान भी शरमा जाता है अर्थात् वे तेज गति से काम करते हैं।


3.
आज गीता पाठ करके,
दंड दो सौ साठ करके,
खूब मुगदर हिला लेकर, 
मूठ उनकी मिला लेकर,
जब कि नीचे आए होंगे,
नैन जल से छाए होंगे, 
हाय, पानी गिर रहा है, 
घर नजर में तिर रहा हैं,
चार भाई चार बहिनें
भुजा भाई प्यार बहिनें
खेलते या खड़े होंगे,
नजर उनकी पड़े होंगे।
पिता जी जिनको बुढ़ापा,
एक क्षण भी नहीं व्यापा,
रो पड़े होंगे बराबर,
पाँचवें का नाम लेकर,
सन्दर्भ:- प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘घर की याद’ से लिया गया है। इसके रचयिता भवानी प्रसाद मिश्र हैं।
प्रसंग:-  यह कविता जेल प्रवास के दौरान लिखी गई। एक रात लगातार बारिश हो रही थी तो कवि को घर की याद आती है तो वह अपनी पीड़ा व्यक्त करता है।
व्याख्या-कवि अपने पिता के विषय में बताता है कि आज वे गीता का पाठ करके, दो सौ साठ दंड-बैठक लगाकर, मुगदर को दोनों हाथों से हिलाकर व उनकी मूठों को मिलाकर जब वे नीचे आए होंगे तो उनकी आँखों में पानी आ गया होगा। कवि को याद करके उनकी आँखें नम हो गई होंगी। कवि को घर की याद सताती है। घर में चार भाई व चार बहनें हैं जो सुरक्षा व प्यार में बँधे हैं। उन्हें खेलते या खड़े देखकर पिता जी को पाँचवें की याद आई होगों और वे जिन्हें कभी बुढ़ापा नहीं व्यापा था, कवि का नाम लेकर रो पड़े होंगे।


4.
पाँचवाँ मैं हूँ अभागा, 
जिसे सोने पर सुहागा, 
पिता जी कहते रहे हैं, 
प्यार में बहते रह हैं,
आज उनके स्वर्ण बेटे,
लगे होंगे उन्हें हेटे,
क्योंकि मैं उन पर सुहागा
बाँधा बैठा हूँ अभागा,

सन्दर्भ:- प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘घर की याद’ से लिया गया है। इसके रचयिता भवानी प्रसाद मिश्र हैं।
प्रसंग:-  यह कविता जेल प्रवास के दौरान लिखी गई। एक रात लगातार बारिश हो रही थी तो कवि को घर की याद आती है तो वह अपनी पीड़ा व्यक्त करता है और वह पिता के प्यार के बारे में बताता है।
व्याख्या-कवि कहता है कि वह उनका भाग्यहीन पाँचवाँ पुत्र है। वह उनके साथ नहीं है, परंतु पिता जी को सबसे प्यारा है। जब भी कभी कवि के बारे में चर्चा चलती है तो वे भाव-विभोर हो जाते हैं। आज उन्हें अपने सोने जैसे बेटे तुच्छ लगे होंगे, क्योंकि उनका सबसे प्यारा बेटा उनसे दूर जेल में बैठा है। .


5.
और माँ ने कहा होगा,
दुख कितना बहा होगा, 
आँख में किसलिए पानी 
वहाँ अच्छा है भवानी 
वह तुम्हारी मन समझकर,
और अपनापन समझकर,
गया है सो ठीक ही है,
यह तुम्हारी लीक ही है,
पाँव जो पीछे हटाता,
कोख को मेरी लजाता,
इस तरह होआो न कच्चे,
रो पड़गे और बच्चे,

सन्दर्भ:- प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘घर की याद’ से लिया गया है। इसके रचयिता भवानी प्रसाद मिश्र हैं।
प्रसंग:-  यह कविता जेल प्रवास के दौरान लिखी गई। एक रात लगातार बारिश हो रही थी तो कवि को घर की याद आती है तो वह अपनी पीड़ा व्यक्त करता है। इस काव्यांश में कवि की माँ पिता को समझाती है।
व्याख्या-माँ ने पिता जी को समझाया होगा। ऐसा करते समय उसके मन में भी बहुत दु:ख बहा होगा। वह कहती है कि भवानी जेल में बहुत अच्छा है। तुम्हें आँसू बहाने की जरूरत नहीं है। वह आपके दिखाए मार्ग पर चला है और इसे अपना उद्देश्य बनाकर गया है। यह ठीक है। यह तुम्हारी ही परंपरा है। यदि वह आगे बढ़कर वापस आता तो यह मेरे मातृत्व के लिए लज्जा की बात होती। अत: तुम्हें अधिक कमजोर होने की जरूरत नहीं है। यदि तुम रोओगे तो बच्चे भी रोने लगेंगे।


6.

पिता जी ने कहा होगा, 
हाय, कितना सहा होगा, 
कहाँ, मैं रोता कहाँ हूँ 
धीर मैं खोता, कहाँ हूँ 
हे सजील हरे सावन, 
हे कि मरे पुण्य पावन,
तुम बरस लो वे न बरसें
पाँचवें को वे न तरसें,
मैं मजे में हूँ सही है,
घर नहीं हूँ बस यही है,
किंतु यह बस बड़ा बस हैं,
इसी बस से सब विरस हैं,

सन्दर्भ:- प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘घर की याद’ से लिया गया है। इसके रचयिता भवानी प्रसाद मिश्र हैं।
प्रसंग:-  यह कविता जेल प्रवास के दौरान लिखी गई। एक रात लगातार बारिश हो रही थी तो कवि को घर की याद आती है तो वह अपनी पीड़ा व्यक्त करता है।
व्याख्या-माँ की बातें सुनकर पिता ने कहा होगा कि मैं रो नहीं रहा हूँ और न ही धैर्य खो रहा हूँ। यह बात कहते हुए उन्होंने सारी पीड़ा मन में समेटी होगी। कवि सावन को संबोधित करते हुए कहता है कि हे सजीले हरियाले सावन! तुम अत्यंत पवित्र हो। तुम चाहे बरसते रहो, परंतु मेरे माता-पिता की आँखों से आँसू न बरसें। वे अपने पाँचवें बेटे की याद करके दुखी न हों। वह मजे में है, इसमें कोई संदेह नहीं है। इसमें केवल इतना ही अंतर है कि मैं घर पर नहीं हूँ। वह घर के वियोग को मामूली मान रहा है, परंतु यह कोई साधारण घटना नहीं है। इस वियोग से मेरा जीवन दुखमय बन गया है। मैं अलगाव का नरक भोग रहा हूँ।


7.
किंतु उनसे यह न कहना,
उन्हें देते धीर रहना, 
उन्हें कहना लिख रहा हूँ,
उन्हें कहना पढ़ रहा हूँ, 
काम करता हूँ कि कहना,
नाम करता हूँ कि कहना,
मत करो कुछ शोक कहना,
और कहना मस्त हूँ मैं,
कातने में व्यस्त हूँ मैं,
वजन सत्तर सेर मेरा,
और भोजन ढेर मरा,
कूदता हूँ खेलता हूँ,
दु:ख डटकर ठेलता हूँ,
यों न कहना अस्त हूँ मैं,

सन्दर्भ:- प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘घर की याद’ से लिया गया है। इसके रचयिता भवानी प्रसाद मिश्र हैं।
प्रसंग:-  यह कविता जेल प्रवास के दौरान लिखी गई। एक रात लगातार बारिश हो रही थी तो कवि को घर की याद आती है तो वह अपनी पीड़ा व्यक्त करता है।
व्याख्या-कवि सावन से कहता है कि तुम मेरे माता-पिता से मेरे कष्टों के बारे में न बताना। तुम उन्हें धैर्य देते हुए यह कहना कि यह कहना जेल में भी पढ़ रहा है। साहित्य लिख रहा है। वह यहाँ काम करता है तथा परिवार, देश का नाम रोशन कर रहा है। उसे अनेक लोग चाहते हैं। उनसे शोक न करने की बात कहना। उन्हें यह भी बताना कि मैं यहाँ सुखी हूँ। मैं यहाँ सूत कातने में व्यस्त रहता हूँ। मेरा वजन सत्तर सेर है। मैं ढेर सारा भोजन करता हूँ, खेलता-कूदता हूँ तथा दुख को अपने नजदीक आने नहीं देता। मैं यहाँ मस्त रहता हूँ, परंतु उन्हें यह न कहना कि मैं डूबते सूर्य-सा निस्तेज हो गया हूँ।


8.
हाय रे, ऐसा न कहना,
है कि जो वैसा न कहना, 
कह न देना जागता हूँ, 
आदमी से भागता हूँ 
कह न देना मौन हूँ मैं,
खुद न समझू कौन हूँ मैं,
देखना कुछ बक न देना,
उन्हें कोई शक न देना,
हे सजीले हरे सावन,
हे कि मरे पुण्य पावन,
तुम बरस लो वे न बरसें,
पाँचवें को वे न तरसों। 
सन्दर्भ:- प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘घर की याद’ से लिया गया है। इसके रचयिता भवानी प्रसाद मिश्र हैं।
प्रसंग:-  यह कविता जेल प्रवास के दौरान लिखी गई। एक रात लगातार बारिश हो रही थी तो कवि को घर की याद आती है तो वह अपनी पीड़ा व्यक्त करता है।
व्याख्या-कवि सावन को सावधान करते हुए कहता है कि मेरे परिजनों को मेरी सच्चाई न बताना। उन्हें यह न बताना कि मैं देर रात तक जागता रहता हूँ, आम व्यक्ति से दूर भागता हूँ मैं चुपचाप रहता हूँ। यह भी न बताना कि चिंता में डूबकर मैं स्वयं को भूल जाता हूँ। तुम सावधानी से बातें कहना। उन्हें कोई शक न होने देना कि मैं दुखी हूँ। हे सावन! तुम पुण्य कार्य में लीन हो, तुम स्वयं बरसकर धरती को प्रसन्न करो, परंतु मेरे माता-पिता की आँखों में आँसू न बहने देना, उन्हें मेरी याद न आने देना।

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