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रीमा मिश्रा की कविता मां

शीर्षक माँ


*माँ* तो होती है *साखी* सी 
जो रच गए कबीर...
माँ तो होती है *चौपाई*सी जो
बना गए तुलसी...
माँ तो होती है *पदावली*-सी
जो लिख गयी मीरा...

माँ तो होती है वेदों की चेतना सी,
माँ तो होती है गीता की वाणी-सी,
माँ तो होती है लोकोत्तर कल्याणी-सी..।

माँ का आंगन तुलसी जैसा
माँ तो होती  है बरगद की छाया-सी
माँ तो होती है महाकाव्य की काया-सी...।

माँ तो होती है अषाढ़ की प्रथम बारिश,
माँ तो होती है सावन की पुरवाई-सी,
माँ तो होती है बगिया की अमराई-सी..।

माँ तो होती है गंगा की लहर-सी
माँ तो होती है  रेवा की गहराई-सी
माँ तो होती है गोमुख की ऊँचाई-सी..।

माँ तो होती बस माँ जैसी है
माँ की उपमा केवल माँ ही है,
माँ तेरे चरणों में नतमस्तक हूँ
माँ तेरे होने से ही ये ज़िन्दगी मैंने पायी है...।

रीमा मिश्रा...
न्यू केंदा कोलियरी
पोस्ट-केंदा
जिला-पश्चिम बर्धमान

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