कविता शीर्षक - पानी में
मिल रहे हैं कातिलों के हाँथ पानी में,
फिर गये सब, पकड़ने के दाँव पानी में ||
धीरे-धीरे दर्द तुमको शांत कर देगा,
है सुलगती आँच, उस पर आँख पानी में ||
शर्म से है अब शहर, मेरा हुआ धुंआ,
दुख बढ़ा है तो, मिला है गाँव पानी में ||
फिर उतारूँ चाँद को दिल ढूंढता उसको,
देखकर जिसको नहाया चाँद पानी में ||
तैरना आता नहीं मुझको, ये सच है सुन!
आजमा ले नाव मेरी माँग पानी में ||
जब पिघलकर रेत भट्टी से गया खाँच में,
ये बदन बनकर हुआ, तब काँच पानी में ||
~तान्या सिंह
गोरखपुर- उत्तर प्रदेश
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