प्रारंभ जिंदगी का
विधा - कुंडलिया छंद
१
जग में आकर जीव को, नूतन हो आभास।
नवजीवन नव जगत में, नव आशा विश्वास।
नव आशा विश्वास, नया घर नव संरचना।
नव समाज नव धर्म, विधाता धरता है पग।
सीख -सीख अनुभव, लेकर पथ चलता है जग।।
२
मधुर सरस जीवन लिए, मां की कोख समाय।
प्रेम दया करुणा भरे, मां से ममता पाय।
मां से ममता पाय, प्यार की मीठी भाषा।
सीखे सब व्यवहार, जिंदगी की प्रत्याशा।
निर्मल पावन प्रेम, सरसता भरी हो प्रचुर।
पावे सुख विश्वास, स्नेह संसार में मधुर।।
डॉ० धाराबल्लभ पाण्डेय 'आलोक',
२९, लक्ष्मी निवास,
कर्नाटकपुरम, मकेड़ी,
अल्मोड़ा, उत्तराखंड।
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