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भीगा जिस्म ग़ज़ल

#गज़ल

भीगा जिस्म उनका बारिश के पानी में।
लगी है आग उनकी कातिल जवानी में।

पैरहन भी पहने हुए है कुछ शफ़्फ़ाक,
बूंद चूमती बदन है आज बदगुमानी में।

चंद लम्हे के खातिर दीदार उनका हुआ,
बेशक दिल उलझा मेरा इक कहानी में।

संगमरमर सा चमकता बदन देखकर,
मौज उठने लगी है दिलकश रवानी में।

साधक जब गुज़रा एहसास -ए- दौर से,
इश्क का आब-ए-हयात मिला पानी में।

स्वरचित--
प्रमोद वर्मा साधक
रमपुरवा रिसिया बहराइच

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