......गज़ल
वो ख़फा हुए कैसे पैगाम लिखूं।
नाराज़गी में उन्हे कैसे सलाम लिखूं।
कसम देकर दूर जा बसे है जनाब,
हथेली पर अब कैसे नाम लिखूं।
उठ रहा दिल में इक दर्द-ए-सैलाब,
उस महफिल की कैसे शाम लिखूं।
बाहों में थी वो थिरकता रहा हमदम,
हुस्न-ए-इज्जत कैसे नीलाम लिखूं।
ईमान-ए-तराजू थी सच्ची मोहब्बत,
अपनी वफ़ा को कैसे नाकाम लिखूं।
फकत तेरी सहूलियत में आज साधक,
उसकी जागीर को कैसे बेनाम लिखूं।
स्वरचित-
प्रमोद वर्मा साधक
रमपुरवा रिसिया बहराइच
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