कलम लाइव पत्रिका

ईमेल:- kalamlivepatrika@gmail.com

Sponsor

छाता लेकर

 छाता लेकर

हो   रहे   भयंकर   बारिश   में
उठे  हुए   तन   की खारिश में।
मिलने-मिलाने की गुजारिश में
ढूंढ़  रही हूँ आज छाता  लेकर।।


कहां   छिपे   हो    मेरे   प्रीतम
ढा   रहे   क्यों     इतने   सितम।
सुन     रही    हूँ    ऐसा    रिदम
ना   आओगे   बाज छाता लेकर।।

देखो  - देखो    सावन     आया
मेघों    ने     मल्हार      सुनाया।
धरती    ने     आभार    जताया
होती टर्र-टर्र  आवाज़ छाता लेकर।।

क्यों खेल रहे लुका छिपी का खेल
दौड़ती   बारिश  मे  मन   की  रेल।
मोबाइल     इण्टरनेट     है    फेल
सब कुछ  झेल रही मै छाता लेकर।।

बुझा   दीपक  घर  मे ना   है   तेल
बताओ  अब  ना  होगा  ये     मेल।
कटीं   लाइनें  बंद   है  विद्युत  सेल
जलाओ ना दिल  और छाता लेकर।।

अन्धकार    है       छाया       घोर
उठ    रही   झींगुरों की  ऐसी  शोर।
अभी   ना    होगा     सुन्दर    भोर
तोड़  रहे  दिल आज  छाता  लेकर।।

मै  अबला ठहरी तुम  बाबा   लहरी
मची    हुई    है     कहां    कचहरी।
भीग    रही    है     वदन    छरहरी
तुझे ढूढ़े ऋषि - मुनि  छाता  लेकर।।

मैं    बावरी    समझ    न      पायी
तुम    तो     ठहरे    बड़े    हरजाई।
भव     चक्कर में     जीवन  गँवाई
दर्शन   दे    दो  आज   छाता लेकर।।

स्वरचित                ।। कविरंग।।
                   पर्रोई - सिद्धार्थ नगर (उ0प्र0)

No comments:

Post a Comment