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रात रानी।

    रात रानी

अरे  सुन  रात रानी
पुरानी  तेरी कहानी।
जानी  और पहचानी
कुछ करो मेहरबानी।। 


अलसाये यौवन पर
मधुर जड़े चुंबन पर।
विक्षिप्त हुए तन पर
विचियों के मंथन पर।।

मधुकरी सा   डाले  डेरा
नासापुटों पर लगाती फेरा।
अंतस    मचलता    मेरा
है  सब   कुछ ही   तेरा।।

हवाओं पर  हो  सवार 
देखती सोया   संसार।
पास  आती  बारम्बार
दुखा देती दिल का तार।।

रति  से  हैं  जो मथित
बाल ललनायें है मृदित।
यौवन  सुरा से हैं तृषित
खोया जिसने जीवन घृत।।

उन्हें   देती तूँ   झकझोर
हलचल से  उठता  शोर।
अभी  होने वाला है भोर
जगा  देती  वासना  चोर।।

बद्ध  प्रेमी  के  आगोश
क्षण  मे खो जाता होश।
ये सब   ही  तेरा   दोष
करती  क्यों  मुझपे रोष।।

बावरी तेरा यह अभिसार
जन   सहता  है   लाचार।
प्रकृति की है कोमल मार
देवी रात रानी को नमस्कार।।

स्वरचित मौलिक
                       ।। कवि रंग ।।
            पर्रोई - सिद्धार्थ नगर( उ0प्र0)

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