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मोह Moh

          ‘मोह '

"मोह ?
बन्धन हैं ,भक्ति हैं
स्वच्छंद किन्तु अधीन हैं
स्वयं के लिए लिये हैं
 किन्तु!
स्वार्थ मदिरा से लिप्त हैं
जहाॅ॑
दयालुता में द्रवित हैं
सुख की पराकाष्ठा 
वहीं!
निरंतर दुःख दे देख रहे हैं 
संसार का उपकार लिए
सभी खड़े हैं आज 
उच्चता का चिन्ह् लिए
मिला सभी को ज्ञान 
इस स्वर्णिम संसार का 
मन ,क्रम,वचन से
 सभी मोह में स्वरबद्ध हैं
किन्तु ?
आत्मा मनोहर मीन हैं
और ब्रम्हानंद ने कहा
जो ’मीन' है वहीं 'मोह' हैं ।।"

रेशमा त्रिपाठी 
प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश

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