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रात को ग़ज़ल। Rat ko ghazal

              गज़ल

आज हमने दोस्त बनाया रात को।
खुद हुस्न  निकल  आया रात को।

काली सड़क और काली हो गयी,
दिखे परछाई न साया रात को।

राह चलना मुश्किल हुआ तो क्या,
यूं तलाश में ठोकरें खाया रात को।

नशीली शाम मुझको नशा दे गयी।
खुद-ब-खुद होश में आया रात को।

वक्त का कद्र जिसने किया है यहां,
कभी पूरी नींद न ले पाया रात को।

जिसने भी देखा समां को करीब से,
घर उसने अपना बसाया रात को।

चांदनी रात भी बेदर्द ठहरी साधक,
जुगनू भी  न जगमगाया  रात को।

स्वरचित
प्रमोद वर्मा साधक
रमपुरवा रिसिया बहराइच
17.07.2019

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