परोपकार
विधा : गीतदीपक खुद जलकर के,
अंधेरा दूर करता है।
गुरु शिष्यों को शिक्षा देकर,
उन्हें लायक बनाता है।
तभी तो दुनियाँ में,
इंसानियत जिंदा है।
और ये दुनियाँ इसी तरह,
से निरंतर चलती रहेगी।।
तपस्या करने वाला,
सच्चा साधक होता है।
वो अपने तप और ज्ञान से,
दुनियाँ को महकता है।
परन्तु कुछ अपवाद,
इसमें भी देखे जा रहे।
अपने अहंकार के कारण
खुदी वो मिटा रहे।।
जो करते है निस्स्वार्थ भाव से,
सेवा और भक्ति को।
उन्हें ही मनबांछित फल,
निश्चित ही मिलता है।
तभी तो आज भी गुरु और भगवान में,
लोगो की आस्था,
आज तक जिंदा है।।
जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
26/12/2019
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