Krishi or krishak kavita ki vyakhya मैथिलिशरण गुप्त
कृषि और कृषक कवीता कि व्याख्या
बरसा रहा है रवि अनल, भूतल तवा सा जल रहा
है चल रहा सन सन पवन, तन से पसीना बह रहा
देखो कृषक शोषित, सुखाकर हल तथापि चला रहे
किस लोभ से इस आँच में, वे निज शरीर जला रहे
व्याख्या :- कवि मैथिलीशरण गुप्त कहते है कि सूर्य दोपहर के समय आग बरसा रहा है अर्थात धुप बहुत तेज है। इस तेज धूप में पृथ्वी आग मे तपते हुए तवे के समान जल रही है। जिस प्रकार चूल्हे पर चढ़ा हुआ तवा अग्नि से तप जाता है उसी प्रकार पृथ्वी भी दोपहर की आग में तप रही है। ऐसी भयंकर धूप में हवा 'सन सन, की ध्वनि करती हुई बह रही है। तेज तपती धरती पर हवा बह रही है वह गर्म है क्योंकि सूर्य इस समय अग्नि की वर्षा कर रहा है ऐसे गर्म वातावरण मे किसान के शरीर से निरन्तर पसीना बह रहा है। किसान तेज धूप की चिंता न करते हुए अपने पसीने को सुखाकर हल चलाने लगता है। थोड़ा हल चलाने के बाद उसके शरीर से पसीना बहने लगता है। वह उस पसीने को सुखाकर पुनः हल चलाने लगता है। इस प्रकार वह अपने कर्म में लगा रहता है और तेज धूप की वह बिल्कुल चिंता नही करता है। यहाँ यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि किसान किस लोभ में अपने शरीर को इस तेज आग में जलाता रहता है। किसान जो इस तेज धूप मे श्रम करता रहता है, उसे बस यही लोभ रहता है कि वह जो अन्न उपजाएगा उससे उसके परिवार और देश के नागरिकों का पेट भरेगा, अन्य कोई लालच उसे नहीं होता।
मध्याह्न है, उनकी स्त्रियाँ ले रोटियाँ पहुंची वही
रोटियाँ रूखी खबर है शाक की हमको नहीं
संतोष से खाकर उन्हें वे, काम मे फिर लग गये
भर पेट भोजन पा गये तो भाग्य मानों जग गये।।
व्याख्या :- दोपहर के समय किसानों की स्त्रियाँ (पत्नियाँ) रोटी लेकर खेत पर पहुँचती है ताकि श्रम करने वाले उनके पति थोड़ा विश्राम कर भोजन कर लें और ऊर्जा प्राप्त कर पुनः काम में लग जाएँ। किसानों की पत्नियाँ जो रोटी लेकर आई है वे सुखी है अर्थात् इन रोटियों मे घी नही लगा है और सब्जी भी नही है। इतना अधिक श्रम करने वाले किसान के भाग्य में रूखी रोटी होती है फिर भी वह कोई चिंता नहीं करता है। वह चैन से रूखी-सूखी रोटी खाकर पुनः खेत में लग जाता है और अपने शेष बचे खेत को जोतने लगता है। सारे संसार का पेट भरने वाले किसान का यह दुर्भाग्य है कि उसे भरपेट भोजन भी नहीं मिल पाता। जिस दिन उन्हें भरपेट भोजन मिल जाता है उस दिन वे अत्यधिक प्रसन्न होते है और उन्हें ऐसा प्रतीत होता है मानो वर्षों से सोया हुआ भाग्य आज जाग गया है। इस प्रकार जगत् को अन्न प्रदान करने वाले किसान का जीवन बहुत कष्ट भरा होता है।
उन कृषको बधुओं की दशा पर नित्य रोती है दया
हिम पात वृष्टि सहिष्णु जिनका रंग काला पड़ गया।
नारी सुलभ सुकुरता उनमें नहीं है नाम को
वे कर्कशांगी क्यों न हों, देखो न उनके काम को।।
व्याख्या :- कवि कहते है कि किसानों की पत्नियों की स्थिति इतनी ख़राब है कि दया भी उनकी दशा पर विलाप करती है आशय यह है कि कृषक-बंधुओं की स्थिति अत्यधिक दयनीय है। बर्फ की वर्षा और जल की वर्षा सहन करते करते उनका गोरा रंग काला पड़ गया है शरीर में रक्त कम हो तभी भी शरीर का रंग काला पड़ जाता है। पर किसान की पत्नी का रंग विपरीत मौसम की मार से काला पड़ गया है। जब किसान और उसके परिवार को भरपेट भोजन नही मिल पाता है तब रक्त की कमी होना स्वाभाविक है। स्त्री को प्रकृति से जो कोमलता प्राप्त होती है वह कोमलता इन किसानों की पत्नियों के नाम के लिए भी नहीं है अर्थात नारी सुलभ सुकुमारता इन्हें उपलब्ध नही है। इन किसानों की पत्नियों के अंग अत्यधिक श्रम करते करते करते कठोर हो गए है। यही कारण है कि नारी को प्रकृति से प्राप्त कोमलता उनके किसी भी अंग में नहीं है।
घनघोर वर्षा हो रही, है गगन गर्जन कर रहा
घर से निकलने को गरज कर, वज्र वर्जन कर रहा
तो भी कृषक मैदान में करते निरंतर काम हैं
किस लोभ से वे आज भी, लेते नहीं विश्राम हैं
व्याख्या :- अत्यधिक वर्षा हो रही है और आकाश मे बादल भयंकर गर्जन कर रहे है ऐसी घनघोर वर्षा में वज्र से भी कठोर किसान के अंग उसे जाने को रोक रहे है, परन्तु किसान की विवशता है जो उसे खेत पर जाने को मज़बूर कर रही है घनघोर वर्षा में भी किसान खेत मे काम करने को मजबूर है यदि ऐसे में वह खेत मे भरा पानी बाहर नही निकालेगा तो उसकी फसल बर्बाद हो जायेगी। यही कारण है कि वह खेत में निरन्तर काम करने को विवश है। सम्भवतः इसी करण वह बिना आराम किए खेत में काम करता रहता है कि यदि वह अन्न नही उपजाएग तो उसका परिवार और देश के नागरिक क्या खायेंगे। यही लोभ उसे निरन्तर श्रम करने की प्रेरणा देता रहता है।
बाहर निकलना मौत है, आधी अँधेरी रात है
है शीत कैसा पड़ रहा, औ’ थरथराता गात है
तो भी कृषक ईंधन जलाकर, खेत पर हैं जागते
यह लाभ कैसा है, न जिसका मोह अब भी त्यागते
व्याख्या :- कवि कहते है कि बाहर आधी रात के समय मौत का सन्नाटा व्याप्त है। सर्दी के मौसम की रात इतनी सन्नाटे भरी होती है जितनी मृत्यु के पश्चात् होती है जिस घर में किसी की मृत्यु हो जाती है उसके चारों ओर सन्नाटा छा जाता है। इसी प्रकार की शीत की रात्रि है। शीतकी इस रात में व्यक्ति का शरीर पत्ते की तरह काँपता है। ऐसी भयंकर ठंड में भी किसान ईंधन जलाकर रात में अपने खेत की रखवाली करते है ताकि चोर, लुटेरे,जंगली जानवर आदि फ़सल को बर्बाद न कर दे। किसान का जीवन अनेक कष्टों से युक्त होता है फिर भी वे अपने काम में लगे ही रहते है। भयंकर ठण्ड, तेज धूप और घनघोर वर्षा में भी फ़सल को बचाने की लालच ही उनको प्रेरणा देता रहता है जिससे वह खेत पर काम करते रहते है। यही एक लोभ है जिसके लोभ में वे सर्दी गर्मी और बरसात मे भी श्रम करते रहते है।
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