निरख सखी, ये खंजन आये
निरख सखी ये खंजन आएफेरे उन मेरे रंजन ने नयन इधर मन भाए
फैला उनके तन का आतप मन से सर सरसाए
घूमे वे इस ओर वहाँ ये हंस यहाँ उड़ छाए
करके ध्यान आज इस जन का निश्चय वे मुसकाए
फूल उठे हैं कमल अधर से यह बन्धूक सुहाए
स्वागत स्वागत शरद भाग्य से मैंने दर्शन पाए
नभ ने मोती वारे लो ये अश्रु अर्घ्य भर लाएii
वर्षा ऋतु के बीत जाने पर शरद ऋतु आती है और साथ ही शरद के आगमन की सूचना देने वाले खंजन पक्षी भी उड़ते दिखाई देते है। उन्ही खंजन पक्षियों को लक्षित कर विरह विधुरा उर्मिला अपनी सखी से कहती है कि हे सखि , देखो, ये खंजन पक्षी आ गये है। इन्हें देखकर मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि मेरे मन को आनंदित करने वाले मेरे प्रियतम लक्ष्मण ने अपने सुंदर नेत्रो को मेरी ओर घुमाया है।
कहने का मतलब यह है कि ये आकाश में उड़ते हुए खंजन पक्षी नही है, अपितु अयोध्या की ओर घुमाये हुए लक्ष्मण के नेत्र है। चारों ओर जो सुहानी धूप फैली हुई है वह भी मुझे ऐसी प्रतीत होनी है मानो प्रिय लक्ष्मण के शरीर का प्रकाश ही चारों ओर फैला हो। स्वच्छ निर्मल जल सरोवर में जो सरसता (जल भरा हुआ) दिखाई देती है वह मानों मेरे प्रिय के मन की ही प्रेम भरी सरसता है।
आगे वह फिर कहती है कि आकाश मे उड़ते हुए जो हंस दिखाई दे रहे है। वे हंस नही है, बल्कि मेरे प्रिय लक्ष्मण का मुझे याद कर मेरी ओर घूमना है। सरोवर में जो खिले हुए कलम और बन्धूक (दोपहर के फूल) दिखाई देते है, वे कमल और दोपहर के फूल नही है अपितु मेरे प्रिय नेत्रो की ओर अधरों की बिखरी हुई शोभा है। आज निश्चय ही उन्हें मेरी याद आई है और मुझे याद करके वे मन ही मन मुस्कराये है। अर्थात मन ही मन मुस्कराने से अधरों पर आई मुस्कान ही यहाँ खिले हुए कमलों और दोपहर के फूलों के रूप में दिखाई दे रही है।
शरद के आगमन का अभिनन्दन करती हुई उर्मिला आगे कहती है कि है शरद ऋतु ! आओ , तुम्हारा स्वागत है, बारम्बार। स्वागत है। आज मेरे सौभाग्य है कि मुझे तुम्हारे दर्शन हुए है। तुम्हारे आने की प्रसन्नता में आज आकाश ओस बिंदु रूपी मोती तुम्हारे ऊपर न्योछावर कर रहा है और मै आँसुओ का तुम्हे अर्घ्य चढ़ाती हूँ।
Nize
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