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रजनी मलिक कविता उन्नति


हमारे दरवाज़े खुले हुए है
चलो घर बदल लेते है

मुझे शेर होके भी
उड़ना आता है
चलो ऊंचें पेड़ों पर रह लेते हैं

मुझे फूल होके भी
पेड़ बनना आता है
चलो डालों से गिर जाते हैं

मुझे इंसान होके भी
शिकार करना आता है
चलो जानवर बन जी लेते हैं।

–रजनी मलिक
शामली (उत्तर प्रदेश)

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