गबन उपन्यास की पूरी कथा
प्रेमचंद ने अपने उपन्यासों के लिए जो कथानक चुने हैं, उनका आधर भारतीय नागरिक और ग्रामीण समाज के विविध् वर्ग हैं। 'गबन में उन्होंने नगरीय मध्यवर्ग के जीवन की समस्याओं को आधर बनाया है। इस उपन्यास के प्रारंभ में प्रमुख नारी पात्रा जालपा के बचपन की एक घटना का रोचक वर्णन है, जिसमें वह, उसकी सखियाँ तथा उनकी माताएँ एक बंजारे पफेरी वाले से अपनी-अपनी पसन्द की वस्तुएँ खरीदती हैं। जालपा को एक चंद्रहार पसन्द आता है पर उसकी माँ मानकी बिसाती से चंद्रहार की चमक ज्यादा दिन न रहने की शंका प्रकट करती है तो पफेरी वाला-''चार दिन में तो बिटिया को असली चंद्रहार मिल जाएगा-कह कर उसके मन में चंद्रहार के प्रति तीव्र लालसा को और तीव्र करता है। शीघ्र ही वह दिन आता है जिसकी जालपा को बहुत प्रतीक्षा थी। उसके पिता दीनानाथ प्रयाग के एक प्रतिषिठत सज्जन दयानाथ के पुत्रा रमानाथ से उसका विवाह तय करते है। बारात आती है पर चढ़ावे के आभूषणों में चंद्रहार नहीं होता। इससे जालपा बहुत निराश होती है, पर सखियों के समझाने पर निश्चय करती है कि वह पति और ससुर से आग्रहपूर्वक यह हार लेकर रहेगी। ससुराल में जाते ही वह घोषणा करती है कि जब तक हार नहीं मिलता, तब तक वह किसी भी आभूषण को नहीं पहनेगी।दयानाथ कचहरी में पचास रुपये मासिक पर काम करता है। वह रिश्वतखोरी को समाज के लिए अभिशाप समझता है इसलिए उसे ईमानदारी का संतोष तो है पर आर्थिक दृषिट से वह बहुत खोखला जीवन व्यतीत कर रहा है। अपने पुत्रा रमानाथ के विवाह में उसने न चाहते हुए भी, सीमा से अधिक व्यय कर दिया था। इतना ही नहीं, आभूषण भी उधर लेकर बनवाए गए थे और जालपा के मायके से मिला नकद रुपया भी रमानाथ की इच्छानुसार व्यर्थ की धूमधाम में खर्च हो गया था। इध्र महाजन पैसों के लिए बार-बार तंग कर रहा था, उध्र रमानाथ के लिए यह भी संकट था कि वह जालपा से अपने घर की झूठी अमीरी की चर्चा कर चुका था। ऐसे में जालपा से गहने लौटाने की बात कहना तो बहुत कठिन था। अंतत: उसने एक उपाय सोचा। रात को चुपके से जालपा की अलमारी से गहनों की संदूकची निकालकर पिता को दे दी। यहीं से उस पर संकट की घड़ी शुरू हो गई। जालपा इस चोरी से बहुत दुखी हुर्इ। रमानाथ भी यह कहकर कि उसके पिता पैसा निकालना ही नहीं चाहते, अपने को बचाने के प्रयास में लगा रहा। एक दिन जब जालपा ने अपने घर जाने की जिद पकड़ ली तो रमानाथ ने उसे यह कहकर रोका कि वह जल्दी ही कोर्इ नौकरी करेगा। अंतत: उसे अपने एक मित्रा रमेश की सहायता से म्यूनिसिपैलिटी में चुँगी क्लर्क की नौकरी मिल गई जहाँ ऊपरी आमदनी की भी अधिक सुविध थी। अब रमानाथ को विश्वास हो गया कि वह जल्दी ही जालपा के लिए गहने जुटा सकेगा। इस बीच उसने जालपा के एक पत्रा के द्वारा, जो उसे डाक में डालने के लिए दिया गया था, उसे खोलकर पढ़ने से उसे पता चला कि जालपा कितनी वेदना सह रही है। तब उसने निश्चय किया कि वह जल्दी ही जालपा को गहनों से लाद देगा। गंगू नामक एक सर्रापफ ने उसे एक जड़ाऊ चन्द्रहार और शीशपफूल उधर दे दिया। एक बार उधर की चीज़ लाकर रमानाथ की तो आदत ही बदल गर्इ। गहने, साड़ी, घड़ी-जो उसे ठीक लगता, उधर खाते से ले लेना उसे बुरा नहीं लगता था।
धीरे-धीरे इन दोनों के संपर्क क्षेत्रा में भी वृद्धि होती गई। एक पार्टी में मिले इन्द्रभूषण नामक अधेड़ वकील और उनकी युवा पत्नी रतन से उनकी मित्राता क्रमश: गहरी होती गई। एक दिन रतन ने जालपा के जड़ाऊ कंगन पर रीझकर वैसे ही कंंगन बनवाने का निश्चय किया। उसके लिए दिए गए छ: सौ रुपये लेकर रमानाथ जब गंगू सर्रापफ के पास पहुँचा तो उसने रुपये रमानाथ के पिछले हिसाब में जमा कर दिए और कंगन के झूठे वायदे करके उसे बार-बार टालने लगा। रमानाथ अब विकट समस्या में पफँस गया था। एक दिन रतन ने आग्रहपूर्वक रमानाथ से पैसे वापिस लौटा देने की बात की। या पिफर वह स्वयं उस सर्रापफ के पास जाना चाहती थी। ऐसे में रमानाथ ने उस दिन की चुंगी की आमदनी आठ सौ रुपये खजाने में जमा न करके, रतन को दिखा कर विश्वास दिलाना चाहा कि उसके पैसे सुरक्षित हैंऋ पर रतन ने अपने पैसे वापिस ले लिये। जैसे-तैसे करके उसने पाँच सौ रुपये तो जमा कर लिए। तीन सौ के लिए वह अपने मित्राों के पास इध्र-उध्र भटकता पिफरा, लेकिन सभी प्रयत्न व्यर्थ हो गए। जालपा को पत्रा लिखकर सारी परिसिथति समझानी चाहीऋ पर उसे पत्रा मिलता, इससे पहले ही शर्मिन्दगी को न छुपा पाने के कारण, उसने घर से भागना ही उचित समझा। बिना सोचे समझे रेल में बैठ गया। वहीं देवीदीन खटीक नामक एक विनोदी और समझदार वयोवृद) से उसकी मुलाकात हुई जो रमानाथ को अपने साथ कलकत्ते ले गया। देवीदीन और उसकी पत्नी जग्गो ने उसे वापिस लौटने के लिए बहुत समझाया, पर पुलिस के डर से उसने न जाने का ही निश्चय किया क्योंकि वह अपने को गबन का अपराधी समझता था।
इस बीच एक समाचार पत्रा में छपे शतरंज-पहेली को हल करने से उसे पचास रुपये की प्रापित भी हुई। उन रुपयों से उसने जग्गो के साथ ही चाय की दुकान खोल ली, पर एक दिन अपनी ही नासमझी से वह पुलिस के हाथ पड़ गया। रमानाथ की मजबूरी से लाभ उठाकर उसे सरकारी गवाह बनने के लिए भी विवश किया गया। वह नहीं जानता था कि इस बीच उसकी पत्नी ने अपने गहने बेचकर उसके द्वारा गबन की गई समूची रकम चुका दी है। स्वयं पुलिस ने इलाहाबाद में हुई इस घटना की जाँच करवायी तो उसे भी इस बात का पता चल गया, पर उन्होंने रमानाथ को अंधेरे में ही रखा।
रमेश बाबू को जब रमानाथ के कलकत्ते में होने का समाचार मिला तो उसने रमानाथ के घर यह सूचना भिजवा दी और उसे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि जालपा यह सब कुछ जानती है क्योंकि जिस पहेली को रमानाथ ने हल किया था, वह जालपा के द्वारा ही भेजी गई थी। बाद में जालपा रतन और देवर गोपी के साथ कलकत्ता पहुँची। रात्रि के समय देवीदीन के साथ उस बंगले में गई जहाँ रमानाथ को पुलिस ने ठहराया हुआ था। सख्त पहरे के होते हुए भी उसने पत्थर में पत्रा लपेटकर रमानाथ को वास्तविक सिथति से अवगत कराया। निशिचंत होकर रमानाथ ने इंस्पैक्टर से कह दिया कि वह झूठी गवाही नहीं देगा। पर एक बार छोटी अदालत में निर्दोष व्यकितयों के विरुद वह गवाही दे चुका था, अत: उन्होंने जालपा को भी तंग करने की ध्मकी दी तो उसे झुकना पड़ा उसकी गवाही से निर्दोष लोगों को कठिन करावास तो मिला ही, दिनेश नामक युवक को पफाँसी की सजा हो गई। प्रायशिचत करने के उद्देश्य से जालपा उस युवक के घर रहकर उसका सारा काम करने लगी। जोहरा से सभी कुछ जानकर रमानाथ ने जज के घर जाकर सारी असलियत स्पष्ट कर दी। पिफर से मुकदमा चलने पर सभी निर्दोष लोगों के साथ-साथ रमानाथ भी छूट गया।
अब रमानाथ पूरी तरह से बदल चुका था। उसने खेती करना ही जीवन का èयेय बना लिया। जालपा के साथ ही जोहरा, दयानाथ, गोपी और रतन भी उसके पास आकर रहने लगे। दयानाथ, जोहरा और रतन, जो अलग-अलग कष्टमय जीवन जी रहे थे, अब साथ रहकर जीवन के सुखद अनुभवों से गुजरने लगे पर एक दिन बाढ़ की सिथति में जोहरा एक बच्चे को बचाने के लिए नदी में कूद पड़ी और गहरी लहरों में सदा के लिए समा गई।
No comments:
Post a Comment