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चीफ की दावत कहानी का सारांश Chif ki kahani ka saransh

             चीफ की दावत  कहानी का सारांश        

शामनाथ एक दफ्रतर में काम करते हैं। अपनी तरक्की वेफ लिए चीप़फ को प्रसन्न करने वेफ उद्देश्य से वे उन्हें अपने घर दावत पर आमंत्रित करते हैं। उनवेफ चीप़फ एक अमेरिकन व्यकित हैं अत: उन्हें प्रसन्न करने वेफ लिए घर का पूरा वातावरण उसी रूप में प्रस्तुत करने वेफ लिए शामनाथ और उनकी पत्नी निरन्तर लगे हुए हैं। कहाँ, कब, वैफसे क्या रखना, लगाना, सजाना है-इसी तैयारी में पूरा समय व्यतीत हो रहा था कि अचानक माँ का èयान आते ही दोनों पात्रा बेचैन हो उठते हैं। माँ बूढ़ी हो गयी है अत: चीपफ वेफ सम्मुख उनका 'पड़ना किसी भी दृषिट से उचित नहीं है। कभी कोठरी में, कभी बरामदे में तो कभी उनकी सहेली वेफ पास भेजे जाने वेफ प्रस्ताव एक-एक करवेफ नकारे जाते हैं। अंतत: निश्चय किया जाता है कि माँ बेटे की पसन्द वेफ कपड़े पहनकर, जल्द ही खाना खाकर अपनी कोठरी में चली जायें और साथ ही èयान रखें कि वे सोयें नहीं, क्योंकि उनकी खर्राटे लेने की आदत है।    डरी, सहमी-सी माँ बेटे की हर बात को सिर झुकाकर स्वीकार करती है। वह गाँव में रहने वाली एक अनपढ़ औरत है जो प्रत्येक सिथति में बेटे का भला चाहती है। शर्मीली, लजीली, धर्मिक विचारों वाली माँ को वुफर्सी पर ढंग से बैठने का तरीका भी सिखाया जाता है, क्योंकि अगर कहीं गलती से साहब का माँ से सामना हो जाय तो शामनाथ को शर्मिन्दा न होना पड़े।

                                           साहब और उनवेफ सभी साथी लगभग आठ बजे तक पहुँच गए। विहस्की का दौर चलने लगता। दफ्रतर में रौब रखने वाले साहब यहाँ पूरी तरह से मुक्त व्यवहार कर रहे थे। पीना-पिलाना समात होने पर सभी खाना खाने वेफ लिए बैठक से बाहर जा रहे थे कि अचानक सामने वुफर्सी पर बैठी, सोती हुर्इ माँ सामने पड़ गर्इ। माँ पर बेटे को बहुत क्रोध् आया, पर मेहमानों वेफ सामने वुफछ भी नहीं कह पा रहे थे। शामनाथ साहब वेफ लिए परेशान थे पर साहब तो अलग ही प्रवृफति वेफ व्यकित निकले। उन्होंने माँ से हाथ मिलाया, गाना सुना। विदेशी साहब वेफ इस उन्मुक्त व्यवहार वेफ कारण देसी साहब भी माँ को उसी दृषिट से देखने लगे। पर माँ लज्जा वेफ कारण अपने में सिमटती जा रही थी। साहब वेफ कहने पर उन्होंने एक पुरानी पुफलकारी भी लाकर दिखार्इ। माँ वेफ इस कार्य से प्रसन्न साहब चाहते हैं कि माँ उनवेफ लिए एक नर्इ पुुफलकारी बनाकर दें। हिचकिचाते हुए माँ उनवेफ इस अनुरोèा को स्वीकार करती हैं। बेटे की तरक्की का प्रश्न है इसलिए आँखों की रोशनी कम होने पर भी इसवेफ लिए प्रयत्नशील होने का वायदा करती हैं। वे तो सब वुफछ छोडकर हरिद्वार जाना चाहत थीं पर, इस परिसिथति में उन्हें अपना इरादा बदलना पड़ा। इसवेफ बाद शामनाथ निशिचन्त होकर पत्नी वेफ साथ अपने कमरे में चले गए और माँ भी चुपचाप अपनी कोठरी में लौट गई।

                चीफ़ की दावत कहानी की भाषा-शैली

चीफ की दावत कहानी में भाषा सहज, सरल और अद्वितीय गहनता लिए हुए है। शब्दों में व्यावहारिकता और भावुकता तो है ही, साथ ही लाक्षणिकता से भी सुसजिजत है। लेखक ने प्राय: बोलचाल में प्रयुक्त होने वाले उस अंग्रेजी तथा पंजाबी भाषा आदि वेफ उन सभी शब्दों को यथोचित रूप में अपनाया है, जो प्राय: मèयवर्गीय हिंदी भाषा जनता में प्रचलित है। लेखक ने उन शब्दों का अर्थ भी प्रस्तुत कर पाठक को सहज होने में सहायता की है। मुकम्मल, डि्रंक, अड़चन, अवाक, साक्षात, रौ, रौब आदि शब्द कहानी के उतार-चढ़ाव व सार्थकता प्रदान करते हैं। सरल, सुबोध् और स्वाभाविक वाक्य कहानी की प्रेषनीयता में सहायक सिd हुए हैं। जैसे-फ्माँ ने झिझकते हुए अपने में सिमटते हुए दोनों हाथ जोड़े, मगर एक हाथ दुपटटे वेफ अंदर माला को पकड़े हुए था, दूसरा बाहर, ठीक तरह से नमस्ते भी न कर पार्इ। शामनाथ इस पर भी खिन्न हो उठे। 'हरिया की माये-गीत में प्रान्तीय प्रभाव कहानी को प्रभावोत्पादक बनाता है।

 'पुफलकारी वेफ प्रसंग से कहानी में जहाँ एक नया मोड़ आता है वहीं कहानी प्रांत-विशेष वेफ वातावरण से ओत-प्रोत हो उठी है। निश्चय ही प्रस्तुत कहानी की भाषा-शैली में रेखाचित्रा सी छटा और सूक्ष्मातिसूक्ष्म भावनाओं को व्यक्त करने की अपूर्व सामथ्र्य है। इससे कहानी सरसता और कलात्मकता का भी समावेश हुआ है।

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