गीत फ़रोश की व्याख्या
प्रसंग - 'गीतपफरोश कविता भवानीप्रसाद मिश्र के पहले काव्य संग्रह में संकलित है तथा यह प्रयोगशील कविता के आरंभिक दौर की एक महत्त्वपूर्ण और बहुचर्चित रचना है। व्यंग्यात्मक स्वर में लिखी गर्इ यह कविता बदलते हुए समय में कविकर्म में आने वाले बदलाव की ओर संकेत करती है। कविता के आरंभ में ही स्पष्ट हो जाता है कि बदलते समाज में कविता खरीदी-बेची जाने वाली चीज हो गर्इ है। अत: कवि विवश होकर पफेरी वाले की शैली में गीत बेचने की बात करता है।व्याख्या - कवि कहता है कि मैं गीत बेचता हूँ और ग्राहक की मर्जी के अनुसार तरह-तरह के सभी किस्म के गीत बेचता हूं। वह शु( व्यावसायिक स्वर में कहता है कि पहले गीत देख लें, बाद में दाम बता दूंगा। ये गीत निरर्थक नहीं हैं, इन की उपयोगिता या लाभ भी बताए जा सकते हैं कि ये किस काम में आते हैं। कवि ने मौज मस्ती और पस्ती दोनों ही सिथतियों में गीत लिखे हैं। कवि अपने गीतों की उपयोगिता गिनाते हुए कहता है कि यह गीत ऐसा है जो सख्त सिरदर्द को भी दूर कर देता है और यह गीत ऐसा है जो पिया को पास बुला देता है। कवि अत्यंत नाटकीय लेकिन सहज ढंग से कहता है कि पहले-पहल जब मैंने गीत बेचना आरंभ किया तो शर्म आर्इ लेकिन बाद में बु(ि आ गर्इ। जहां लोग किसी भौतिक वस्तु की भांति अपना र्इमान तक बेच डालते हैं वहां गीतकार गीत क्यों नहीं बेच सकता। इसमें हैरान होने की कोर्इ बात ही नहीं है, इसलिए सोच समझकर आखिर मैंने गीत बेचना अर्थात अपनी कलम की स्वतंत्राता को कुछ पैसों के लिए बेचना आरंभ कर दिया।
अपने गीतों की विविध्ता के विषय में कवि का कहना है कि यह गीत सुबह का है इसमें जाकर आप देख सकते हैं। यह गीत गजब का है, इसके द्वारा आप गजब ढाकर देख सकते हैं। कवि ने हर प्रकार की सिथतियों और मन: सिथतियों में गीत लिखे हैं। एक गीत सूनेपन में लिखा था तो दूसरा पूना शहर में लिखा था। वह व्यंग्यात्मक स्वर में कहता है कि यह गीत ऐसा है जो पहाड़ों पर भी चढ़ सकता है और दूसरा गीत ऐसा है जिसे जितना आगे बढ़ाना चाहो बढ़ सकता है। यह गीत ऐसे प्रभाव वाला है कि इसे सुनकर भूख-प्यास दूर हो जाती है और यह गीत ऐसा है जो भुवाली नामक तपेदिक के अस्पताल की हवा जैसा असरदार है। एक अन्य गीत तपेदिक की दवा के समान है। इस प्रकार कवि सीध्े-सादे और अटपटे लगने वाले सभी प्रकार के गीत बेचता है।
कवि एक अनुभवी व निपुण व्यवसायीक के लहजे में कविता के ग्राहकों को संबोधित करते हुए कहता है कि यदि ये गीत पसंद न आ रहे हों तो और गीत भी है जिन्हें मैं दिखला सकता हूं। यदि आप सुनना चाहें तो मैं इन्हें गा भी सकता हूँ। इनमें छंद और बिना छंद वाले हर प्रकार के गीत पसंद किए जाने लायक हैं। इनमें ऐसे गीत भी हैं जो अमर या कभी न मिटने वाले हैं और ऐसे गीत भी हैं जिनका प्रभाव तुरंत समाप्त हो जाता है। कवि अपने व्यवसाय को चलाने के लिए समझौतावादी दृषिटकोण अपनाता है और हर तरह की मांग को पूरा करने के लिए तैयार रहता है। अत: स्पष्ट कर देता है कि यदि ये गीत पसंद न आ रहे हों तो इसमें बुरा मानने की कोर्इ बात नहीं है, मेरे पास तो कलम और दवात है, यदि ये गीत अच्छे नहीं लगे हैं तो नए गीत लिख देता हूं। और यदि नये नहीं चाहिए तो उन गीतों को लिख दूं जो गए अर्थात विगत काल के हो चुके हैं। आजकल कवि ध्ंध दुहरा चल रहा हैµकलम से गीत लिखते हैं और पेफरीवाले की तरह कंध्े पर रखकर बेचत हैं। कुछ घंटे गीत को लिखने में लगते हैं और कुछ उन्हें बेचने के लिए पेफरी लगाने में। लेकिन बेचने में लगी इस देरी के दाम आपसे वसूल नहीं करूंगा। मैं तो नए और पुराने सभी तरह के गीत बेचता हूं।
कवि के अनुसार उसने जन्म और मरण दोनों ही अवसरों के लिए गीत लिखे हैं। कभी विजयगीत लिखे हैं और कभी शरण गीत। कोर्इ गीत रेशम का है, कोर्इ खादी का। कोर्इ पित्त का है, कोर्इ बादी का। कुछ अन्य डिजाइन के गीत भी हैं। इनमें इल्म वाला गीत भी है और पिफल्मी गीत भी, जो नर्इ और चलती चीष है। इनमें सोच-सोचकर मर जाने का गीत भी है। इन सब 'रेशमी गीत, शरण गीत, पिफल्मी-गीत आदि गीतों के डिषाइन की सांकेतिकता कवि जीवन की विडंबना और विवशता को उभारती है।
कवि का स्वर व्यंग्यात्मक होते हुए भी वस्तुसिथति की गंभीरता की ओर संकेत करता है। कहता है कि यह सब आपको दिल्लगी की बात लगती होगी लेकिन इसमें हंसी की कोई बात नहीं है। मैं तो दिन-रात लिखता ही रहता हूँ इसलिए तरह-तरह के गीत बन जाते हैं। कभी ये गीत रूठते भी हैं। लेकिन मैं पुन: उन्हें मना लेता हूँ। ये सारे गीत जो दिखाए हैं इनका ढेर लग गया है, ग्राहक की मर्जी है यदि नहीं खरीदते तो इन्हें हटाए लेता हूँ। बस अब अंतिम एक गीत और दिखलाता हूँ। या पिफर कैसा गीत चाहिएµ इसके बारे में आप भीतर अपने घर में जाकर पूछ आइए। वैसे यह सही है कि गीत बेचना पाप है लेकिन मैं लाचार हूँµअत: हारकर गीत बेच रहा हूँ। कवि की लाचारी अंत में उसके द्वारा वस्तु सिथति की विवश स्वीÑति की ओर संकेत करती है। इस प्रकार इस भौतिकतावादी समाज में कवि अपनी और अपने गीतों की स्वतंत्रा चेतना को बेचने के लिए विवश है।
विशेष सरलता, सीधपन और आत्मीयत काव्यभाषा की सामान्य विशेषताएं हैं। कविता में बोलचाल की सीध्ी सरल भाषा प्रयुक्त हुर्इ है। लेकिन सीध्ी, सरल होने पर भी यह बहुत सशक्त और भंगिमायुक्त है। तुकबंदी तथा ''अपने गीत बेचता हूँ: जी हां, हुजूर मैं अपने गीत बेचता हूँµइन पंकितयों को दुहराकर कवि ने अपने व्यंग्य को मात्रा तीव्रता ही प्रदान नहीं की है बलिक साहित्य और समाज में आते जा रहे अनिवार्य बदलावों की सूचना भी दी है।
No comments:
Post a Comment