गजल
अब क्या गांव क्या शहर।जिये जिन्दगी दो पहर।
जब वासना हो सिर चढ़ी,
हर पल घोलती हो ज़हर।
जिये जिन्दगी........
रिश्ते ही सब बाजारू हो,
जब अपने ढ़ाते हो कहर।
जिये जिन्दगी........
राग रागनी हो गये बेसुरे,
क्या काफिया क्या बहर।
जिये जिन्दगी........
सावन में सैलाब है आया,
फिर क्या नदी क्या नहर।
जिये जिन्दगी........
घासों पर हरियाली छाई,
उनकी भी है इक लहर।
जिये जिन्दगी........
साधक' तेरी खुशकिस्मती,
दोस्त वक्त जब गया ठहर।
जिये जिन्दगी........
स्वरचित-
#प्रमोद वर्मा साधक
रमपुरवा रिसिया बहराइच
16 जुलाई 2019
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