।। अंगद पाँव जमाये हैं।।
लंका मे अंगद पाँव जमाये हैं।
रघुवर के श्रेष्ठ दूत कहलाये हैं।।
तन- मन- धन समर्पित करके
भाव - भक्ति हृदय मे भरके
श्री चरणों में शीश झुकाये हैं।।
जब घेरे हुए निराशा सबको
देखा चिंता कष्ट मे रामादल को
जग को कौशल आज दिखाये हैं।।
लंका मे हाहाकार मचाया जाकर
आशीष राम का पहले पाकर
योद्धाओं के छक्के आज छुड़ाये हैं।।
लगाया प्रश्नचिन्ह रावण के सम्मुख
कर दिया स्याह लंका पति मुख
सभा बीच सौगन्ध राम का खाये हैं।।
जब पाँव न हिला पाया वीरों ने
लज्जित हो खसक रहे धीरों ने
बैठे निज आसन पर शर्माये हैं।।
क्रोधित रावण दौड़ा पैर उठाने को
जहाँ में लंका का यश फैलाने को
तब बालि पुत्र अपना पैर हटाये हैं।।
ख्याति राम का वहां बढ़ा कर
ऊर्जा प्रभू का दिल से लगाकर
वापस आज रामादल में आये है।।
स्वरचित मौलिक
।। कविरंग। ।
।।पर्रोई - सिद्धार्थ नगर (उ0प्र0)
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