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सावन का गीत। Savan ka geet

 सावनी गीत


ये  बदरा  नेह  जगाये
छम-छम जल बरसाये
सावन  गीत     सुनाये।।



झुकि-झुकि बरसे काली बदरिया
सूनी   हैं   मोरी   महल-अटरिया।
सूखा है तन केवल बची है ठठरिया
असुवन   नीर     नहाये।। ये बदरा----

रहि-रहि चमके बहुतै बिजुरिया
फाटि   गइल मोर सूती घघरिया।
हरि   जी से  छूटल मोरा सहंरिया
सेज मे  बिच्छू डंक  समाये।। ये बदरा------

गड़-गड़  कइके बादल   गरजे
जिया  मोर  सुनि  बहुतै  डरपे।
पिय  नाहीं मोर मन को बरजे
धू-धू   विरह   जलाये।।ये बदरा - - - - -

पुरुवा-पछुवा बहै झकोरी
मोरे   नैन  चुवैंं जस ओरी।
काहें  लगायो प्रेम की डोरी
कौन  ये  आग  बुझाये।। ये बदरा - - -

दिवस  वित्त नहिं बीते रतिया
चुरमुर-चूरमुर   बोले  खटिया।
कोई न समझ दुख की बतिया
हिया  को  चीर  दिखायें। ये बदरा-----

नन्दी - नन्दा   मोहे  चिढ़ावैं
पानी  मांगी  ठेंगां   दिखावै।
जियरा मे हरदम ठेस लगावैं
बहि-बहि   कजरा  जाये।। ये बदरा - - - -
 स्वरचित मौलिक     
।। कविरंग।।     
 पर्रोई - सिद्धार्थ नगर (उ0प्र0)

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