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मजा ही कुछ और है.... Mazaa hi kuchh or hai

मजा ही कुछ और है

यादों के गुलिस्तां में मन भटकता चहुं ओर है,
तुम्हें सोचने का जाने क्यों मजा ही कुछ और है।

हकीकत में सब हासिल हो यह मुमकिन नहीं,
ख्वाबों में हकीकत को सजाने का मजा कुछ और है।

जमीन हो या हो आसमान नहीं मिलता सबको,
क्षितिज में दोनों को पाने का मजा ही कुछ और है।

खुशी में छलके या दुख में नम हो जाए आंखें,
दोनों ही एहसास से गुजरने का मजा ही कुछ और है।

मंजिल तक पहुंच जाना कोई बड़ी बात नहीं,
राह के मुश्किलों से जूझने का मजा ही कुछ और है।


प्रेषक: कल्पना सिंह
पता :आदर्श नगर, बरा, रीवा (मध्य प्रदेश)

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