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एशिया का सबसे बड़ा किताब बाज़ार कोलकाता Asia ka sabse bada pustak mela kolkata

यादें एशिया का सबसे बड़ा किताब बाज़ार कोलकाता की

कहा जाता है कोलकाता के कॉलेज स्ट्रीट एशिया का सबसे बड़ा क़िताबो का बाज़ार हैं, जी हां, कैसे न रहे बगल में भारत के सबसे पूराने विश्वविद्यालय कलकत्ता विश्वविद्यालय, दरभंगा
बिल्डिंग , प्रेसीडेंसी यूनिवर्सिटी , संस्कृत विश्वविद्यालय
,सुरेन्द्रनाथ इवनिंग, डे, वूमेन, उमेशचंद्र, जलान गर्ल्स कॉलेज, चितरंजन, बांगोबासी, सेंट पाल, विद्यासागर,सिटी राजाराममोहन , आंनद मोहन, गिरिशचन्द्र, खुदीराम, जगदीश चन्द्र, शिक्षायतन, गोयनका, स्कॉटिश चर्च,महराजा मनिंद्र चंद्रा मानों तो कुछ ही किलोमीटर में महाविद्यालय ही महाविद्यालय है, तब हम अपने संस्मरण पर चलते है, बस से जाते तो घर से सिर्फ दस किलोमीटर दूर रहा ,पर बस से जाने से अच्छा पैदल जाना , क्योंकि हावड़ा तक तो ठीक पर रवीन्द्रनाथ सेतु पार करते ही वह जाम और वह भी एम. जी यानी महात्मा गांधी रोड की क्या बताऊं , इसलिए बीस किलोमीटर दमदम होते हुए ट्रेन से ही जानें का विचार किये, उन लोगों को बारहवीं की किताब लेना रहा । बात पाँच जून दो हजार सत्ररह शुक्रवार विश्व पर्यावरण दिवस दिन की बात है, अपने एकतरफा प्यार के  प्रिय नेहा व शिष्या बारहवीं कक्षा कला विभाग की जूली नहीं अणू के साथ लिलुआ से बाली गये बैण्डेल लोकल मेन लाइन से फिर डानकुनी सियालदह लोकल पकड़े बाली हल्ट से यहां आने के लिए सीढ़ी चढ़ना पड़ता  ,क्या कहूं वैसे हम तो कॉलेज हावड़ा ब्रिज होते हुए बड़ा बाज़ार बी.के,साव मार्केट, कैनिंग स्ट्रीट पिता जी के मामा यानि दादा जी के यहां साईकिल रखकर वहां से कॉलेज पैदल ही जाते हैं, पर कभी भी अगर हम ट्रेन से जाते तो अपनी प्रिय की स्मरण में उसी सीढ़ी से आते जाते, जिस सीढ़ी से वह गुजरी थी ,टिकट संख्या :-31430426 हमारा रहा अंतिम का जो 26 है वह हमारा बी.ए प्रथम वर्ष हिन्दी आनर्स की क्रमांक रहा, और नेहा की टिकट की अन्तिम संख्या 27 व अणु की 28 रहा वह टिकट आज भी कविता शीर्षक "हम लोगों की सैर" के साथ है,पर हम लोगों के फोटो नहीं , कहती भी रहीं छवि खिंचवाने के लिए पर हम न खिंचवाएं, वे दोनों आपस में सेल्फी लेती रही,उस वक्त हमारा पहला कविता की डायरी लिखाता रहा, वह डायरी, डायरी नहीं एक मोटा रजिस्टर रहा, जो पिताजी अपने कार्यकाल से लाये रहे,उसमें हिसाब किताब हुआ रहा ,
फिर भी हम रोशन उसमें कविताएं लिखते रहें,और अभी हमारा यही कोरोना, कल आये अम्फान तूफान को लेकर हम सोलहवीं डायरी लिख रहे है, जिसमें, कविताएं ज्यादा, हिन्दी, अंग्रेजी, भोजपुरी, मैथिली,बंगाली  में व अन्य विधा हिन्दी में आलेख,दोहा, ग़ज़ल, नाटक, व्यंग्य ,कहानी,गीत, शायरी, हाइकु लिखते हुए सफर कर रहे हैं।
चाउमीन, आईसक्रीम खाये व खिलाये फिर सियालदह से ट्रेन से चले शाम के चार बजे के करीब बाली हल्ट आये, जल्दी रहा दौड़ना पड़ा रहा फिर क्या उन दोनों का भी बस्ता भी लेना पड़ा ,पुराने से नया बाली में कर्ड लाइन की चार नम्बर प्लेटफार्म बनी रही पहले सामने पर अब थोड़ा दूर रहा फिर जैसे तैसे ट्रेन पकड़े लिलुआ पहुंचे, एक गज़ब की बात है वैसे मेरा तो टिकट लगता ही नहीं, कॉलेज की नाम ही काफी रहा , फिर भी इन लोगों के साथ जाना रहा टिकट कटवा लिए, फिर क्या मेरे पास ही टिकट रहा हम आगे वह दोनों पीछे-पीछे, टिटी साहब टिकट निरीक्षक उन दोनों को पकड़ लिए , फिर नेहा आवाज लगाई ,क्या वह आवाज रही ,गये टिकट दिखाये , साहब हस्ताक्षर किए, और नाम पूछे बताएं रोशन , शाय़द बेचारा कुछ जानते रहे ,प्रिय की तरफ देखकर हमें कहे कि अपना रोशनी को तो अपने साथ लेते जाओ ,दिल खुश हो गया रहा उन बातों से ।
जब बाली घाट से चली ट्रेन विवेकानंद सेतु गंगा,हुगली नदी पार करते हुए दक्षिणेश्वर जा रही थी तब हम माँ काली व गंगा माई से प्रार्थना करते रहे हे मां कभी हम भी तुम्हारी पूजा करने अपनी प्रिय के साथ आऊं, पर वह दिन अब तक न आया , शायद आएगा भी नहीं , यही है हमारी उसकी संस्मरण ।

 रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज , कोलकाता भारत

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