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दोस्तों, कोरोना से इतना भी डरो ना, मानवता के लिए कुछ करोना corona se itna daro nahi

दोस्तों, कोरोना से इतना भी डरो ना, मानवता के लिए कुछ करोना

दोस्तों थोड़ा डर के, सावधानी बरत के हम अपने आप को सलामत रख सकते हैं। आजकल सभी जगह न्यूज़पेपर में टीवी व रेडियो के न्यूज़ में, व्हाट्सएप में, इंस्टाग्राम पर, मैसेंजर में मीडिया के सभी माध्यम से, फेसबुक से हमें एक ही शब्द सुनने को मिल रहा है वह है कोविड-19 ''कोरोना वायरस" का मातम व कहर।
हमारे कान जैसे उब गए हैं यह शब्द सुनकर लेकिन क्या किया जाए , कभी किसी ने सोचा भी न था कि दुनिया महान शक्तिशाली, विकसित देश इस तरह लॉक डाउन हो जाएंगे। हम सब कितनी अजीब स्थिति से घिरे हुए हैं। सब लोग जैसे खुद के ही घर में कैद हो गए हैं लेकिन हमारी सलामती के लिए हमें यह कदम लेना ही पड़ेगा, सब कुछ सहन करना ही पड़ेगा। यह कहावत तो आपने सुनी होगी 'खुदा के घर देर है पर अंधेर नहीं' कभी ना कभी कुदरत अपने होने का एहसास किसी ना किसी तरीके से कराती रही है। आज के विज्ञान और तकनिकी युग में मानव खुद को बहुत ही स्मार्ट समझ रहा है, वह कुदरत से पंगा ले रहा है,उसके साथ खिलवाड़ कर रहा है लेकिन उसे जानना होगा कुदरत से पंगा लेना कितना खतरनाक साबित हो सकता है। सबके लिए आज प्रदूषण की वजह से हमें शुद्ध प्राणवायु नहीं मिल रही, ग्लोबल वार्मिंग की समस्या हमारे सामने है, बिन मौसम बारिश हो रही है, लोगों की अनजान वायरस से लाखों की तादाद में मौतें हो रही है। लाखों कोरोना वायरस से संक्रमित हो रहे हैं,  कितने रोग मानव जाति को सता रहे हैं, जिनके कभी किसी ने नाम तक न सुने थे , यह सब क्या है कुदरत की नाराजगी है। हम कितनी मात्रा में वृक्षों का नाश किए जा रहे हैं और उसकी तुलना में कितने वृक्षारोपण कर पेड़ लगा रहे हैं? हमारे पास जवाब नहीं है। हम तो इस जमाने में बस सुख-सुविधा व भौतिक सुविधाएं कैसे मिले, इसके बारे में ही सोच रहे हैं। हमारे इस अद्यतन युग में हमें खुद के लिए परिवार के लिए समय नहीं है। संस्कृति के लिए समय नहीं है। पहले हमारी माता, बहने कितनी मेहनत करती थी? घर में ही कितने अच्छे-अच्छे पकवान बनाया करती थी और आज हम फूड पैकेट्स के पीछे पड़े हैं। फास्ट फूड व जंक फूड खा रहे हैं, चाइनीस खा रहे हैं, पिज़्ज़ा खा रहे हैं ,पास्ता खा रहे हैं और नई  चायनीज बिमारियों को न्योता दे रहे है। आज हम मसाला पत्थर पर नहीं पीसते हमें मिक्सी चाहिए, हमें वॉशिंग मशीन चाहिए कपड़े धोने के लिए। पहले सब काम हम खुद मानवीय मेहनत से किया करते थे, तो हमारी कसरत हो जाया करती थी। ना तन में कोई रोग था और मन में। शरीर व मन दोनों निरोगी व खुशमिजाज थे। हम पैदल कितनी दूर चल दिया करते थे, परंतु आज गाड़ी के सिवा जाना कहां अच्छा लगता है। हमारे बुजुर्ग जो 80/ 90 साल की उम्र तक अच्छा जीवन गुजारते थे और आज तो 25 की उम्र में ही चश्मे, हार्ट अटेक, डायबिटीज और ना जाने कितनी बीमारियां हमारे अंदर घर कर जाती है। आदमी की एवरेज उम्र 60 /65 साल तक की हो गई है। इसका मूलभूत कारण हमारा रहन-सहन, खान-पान, सेहत का ध्यान ना रखना, तनावग्रस्तता, कामकाज की व्यस्तता और बहुत से अन्य कारण हो सकते हैं जिनको हमें ढूंढने पड़ेंगे। हम पश्चिम की संस्कृति का अनुसरण व प्रेरणा लेकर चलने में खुद को धन्य समझते हैं। हमारे परिवार को देने के लिए हमारे पास बिल्कुल वक्त नहीं है। हम कामकाज में इतने व्यस्त हो गए हैं कि परिवार से भी भ्रमणध्वनी पर बातें कर हैं, हमारे पास हमारे बच्चों को देने के लिए वक्त नहीं है। हम काम में इतने उलझे व व्यस्त रहते हैं। रविवार छुट्टी का दिन हो तब भी हम दूसरे काम निपटाने के पीछे लगे होते हैं जैसे कुछ खरीदारी करनी हो किसी के घर जाना हो, किसी मृतक के घर जाना हो ऐसे कामों में लगे हैं, आज हमें कुदरत ने इस स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है कि जो तुम भूल चुके हो तुम्हारी संस्कृति, तुम्हारी परंपरा, तुम्हारे रिती-रिवाज, घर का खाना, सादा जीवन उच्च विचार उससे फिर से जुड़े रहना होगा। अपने परिवार के लिए हमें अपना वक्त तुम्हें देना, होगा अगर हम ना चाहें फिर भी हमारे पास कोई विकल्प नहीं है। इसलिए वर्तमान में वैश्विक महामारी के इस दौर में इस बात को सकारात्मक ढंग से सोचने के लिए हमें बहुत अच्छा वक्त मिला है, इसका हमें सदुपयोग करना चाहिए। हमारे परिवार को वक्त देते हुए हम बहुत कुछ क्रिएटिविटी कर सकते हैं। हमें अपनी सोच को जगाना होगा हमारे आसपास घूमते हुए न्यूज़, मैसेजेस जो हमें 24 घंटे हर मिनट, हर सेकेंड मिल रहे हैं उसे नकारात्मक सोच या हास्यात्मक रूप से ना लेते हुए  उन पर सकारात्मक विचार से मंथन करना चाहिए। थोड़ा गंभीर होना पड़ेगा, इस समय राष्ट्र को हमसे व हमको राष्ट्र से एक दूसरे की जरूरत है। इसलिए तन मन धन से  सहयोग देना होगा। हमारी सरकार व प्रशासन, समाज सेवी, मानव सेवा करने वाले कर्मवीर योद्धा, देशभक्त हमारे लिए कितने चिंतित हैं। हमारी सुरक्षा के लिए उन्होंने यह कदम उठाया है हमें उन्हें पूरी तरह से सहयोग देना होगा, अगर हमारे अंदर जरा सी भी राष्ट्र भावना के अंश है तो हम जरूर सहयोग देंगे। दुनिया प्रेम से चलती है तो हमें समझना होगा हमारा सहयोग कितना जरूरी है। हमें सकारात्मक विचार के लिए कोई पैसे खर्च करने की भी जरूरत नहीं है। घर में रहना है ,सुरक्षित रहना है हमारे  पुलिसकर्मी, और प्रशासन हमारे लिए दिन-रात समर्पित भाव से सेवा में लगे हुए है, तो हमारा भी राष्ट्र के प्रति थोड़ा तो फर्ज बनता है। देश के हर एक नागरिक को  समझ लेना चाहिए की हम हमारे अधिकारों की लड़ाई हमेशा लड़ते रहे हैं लेकिन अब  हमारा फर्ज निभाने का वक्त आ गया है, तो पीछे नहीं हटना है, हिम्मत से काम लेना है। अगर हम सब इस समय में एकजुट रहेंगे और प्रशासन का साथ देते हैं, तो लाभ हमारा ही है। बाहर कोरोनावायरस से स्थिति बिगड़ती जा रही है और घर के अंदर रहकर हमारा मानसिक संतुलन खराब ना हो इसके लिए हमें  सावधानियां बरतनी होगी। अगर इस समय में हम तनावग्रस्त होते रहे तो अपने परिवार,समाज और देश को भारी नुकसान होगा। धैर्य बनाए रखना होगा। अफवाहों से दूर रहकर, बिन जरूरी चीजों का संग्रह ना करके दूसरे के लिए भी सोचना होगा। शांति बनाए रखनी होगी। बच्चे, परिवार और देश को संभालना होगा। समय और कुदरत दोनों बलवान है इन से पंगा हम नहीं ले सकते लेकिन शांति से, हिम्मत रख कर यह समय बीत जाने का इंतजार जरूर कर सकते हैं। हर रोज हम सुबह- शाम हमारे घर पर ही सभी के कल्याण की कामना करते हुए ईश्वर से प्रार्थना कर सकते हैं।
स्वस्थ्य नागरिक, स्वस्थ भारत।
जीत जाएगा इंडिया, फिर से मुस्कराएगा इंडिया।
आपका अपना
शैताना राम बिश्नोई
राउमावि देवानिया, जोधपुर

1 comment:

  1. हार्दिक आभार एवं अभिनंदन जी

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