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दरिया लाँघ के आई हूँ

दरिया लाँघ के आई हूँ 


धीरे चलना जिंदगी अभी ख्वाबों को सजाना है
दरिया  लांघ के आई हूं अभी तो सिंधु पार करना है।।
शुरू हुआ है कारवां जिंदगी का मेरी, राह पथरीली डगर है और तम विकराल सा ,
बहुत हैं बटमार अभी उनको भगाना है।।
दरिया लांघ ..........................
चल रहे थे अब तलक यारों की सोहबत में,
अब घड़ी आई है सबको आजमाने की,
कौन कब तक साथ है अभी तो यह परखना है।।
दरिया लांघ....................
फकत मौक़े जिंदगी ने मुझको दिए,
जहां में कुछ कर दिखाने को,
हूँ यहां तक मैं बढी,
अभी तो  दीपक सा दमकना है।
दरिया लांघ......................

                   रचनाकार
    माया बैरवा0
      शिक्षिका 
   केकडी अजमेर ( राजस्थान )

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