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मैथिली कविता आबूं नैई लेकिन कोरोना भगाबूं maithili kavita roshan kumar jha

आबूं नैई लेकिन कोरोना भगाबूं

घर सऽ बाहर नैई आबू  ,
घर पर रैही कऽ कोरोना भगाबूं !
हम रोशन के विनीत अछि कि माधव के गुण गाबूं  ,
अखन घोरे पर रहूं अहाँ सभ भैया आर बाबू !

मिल कऽ सोब गोटा बदलाव लाबूं ,
एखन घोरे पर रहि कऽ , नैइ कमाबू !
एक नीक आदमी के फ़र्ज़ निभाबूं ,
कोरोना मुक्त मिथिला के साथ  कोरोना मुक्त भारत बनाबूं !!

केतक अछि अहाँ के क़ाबू ,
ओऽ सऽ अहाँ कोरोना भगाबूं !
घोरे पर रहि कऽ इअ महीना बीताबू ,
कोरोना के हरा कऽ अपन भारत जीताबू !!

दुख तक़लीफ़ सैह कऽ नीक दिन लाबू ,
केअ अपने लोगेन भईया आर बाबू !
बाहर जेअ के जे इच्छा अछि होअ दबाबू ,
कोरोना भगा कऽ फेर सँ ओहि दिन के सुख पाबू !!

रोशन कुमार झा 

सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज ,
कोलकाता

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