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समय का फेर न पहले समझ में आया samay ka fer pahle samjh me nhi aya

ग़ज़ल

समय का फेर न पहले  समझ में आया था।
वही  है आज  सगा  जो   कभी  पराया था।

वो रात आ न सकी  आज तक हक़ीक़त में,
वो रात जिसको कभी ख़्वाब में सजाया था 

वो  राज़  सब  पे अयां हो  गया  जमाने में,
वो राज़ जिसको कभी आपने  छुपाया था।

उसी  को  आज  नहीं  रोशनी  मयस्सर  है,
वो जिसने राह में आकर दिया जलाया था।

वहीं  पे  बैठ  के  कहता  नहीं  उसे  मंज़ूर,
अगर   सुझाव  ही  मेरा  उसे  न भाया था।

उसी से आज  मिलाता  फिरे  है वो सबको,
जिसे  हमीद  ने कल ही  उसे  मिलाया था।

हमीद कानपुरी,
अब्दुल हमीद इदरीसी,
वरिष्ठ प्रबंधक,
पंजाब नेशनल बैंक,
मण्डल कार्यालय ,कानपुर

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