परिवर्तन
परिवर्तन,
एक चिरंतन सत्य !
परिवर्तन......
तब भी था,जब
सृष्टि का आरंभ हुआ
परिवर्तन तब भी विद्यमान रहेगा
जब सृष्टि का विनाश होगा
परिवर्तन कल भी था
परिवर्तन आज भी है और
कल भी रहेगा....।
पृथ्वी, चांद, सितारे
एक आग का गोला थे
परिवर्तन हुआ
कुछ ग्रह बने
कुछ उपग्रह
और कुछ सितारे बन गए
परिवर्तन हुआ
पानी बना मछलियां आईं
वनस्पतियां आईं जीव जंतु आए
मनुष्य पहले वानर था
परिवर्तन आया
और मनुष्य बन गया
पहले जंगलों-गुफाओं में रहता था
अब आलीशान महलों में रहने लगा....
परिवर्तन...
कभी पैदल चलता था
अब.....
बस, कार, हवाई जहाज में चलने लगा।
परिवर्तन.....
कच्चा मांस खाने वाला
अब पिज्जा बर्गर खाने लगा
जो कभी स्वयं इतिहास था
इतिहास लिखने लगा
परिवर्तन.....
परिवर्तन ना सोता है
ना रुकता है
ना थकता है
चलता रहता है अनवरत
अपनी यात्रा पर ।
इसकी कोई मंजिल नहीं
इसकी कोई पहचान नहीं
चुपचाप आता है अनजाना सा
फिर अपना पूर्ण रूप दिखाता है
कर लेता है सबको अपने वश में
चाहे जड़ हो या चेतन
क्योंकि....
यह है चिरंतन ।
कांति प्रसाद सैनी
जनूथर (डीग) भरतपुर
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