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लघुकथा पालकी


                       लघुकथा :- पालकी

आज  गाँव में बड़ी चहल-पहल है कारण छलकू की शादी होने जा रही है। उसका वर्षों का ख्वाब पालकी मे बैठने का, पूरा होने जा रहा है। उसके मन मे नाना प्रकार के उधेड़ बुन चल रहे हैँ। कभी दूल्हन के बारे में सोंचता तो कभी अपने भविष्य के बारे मे, कहीं शादी के बाद मेरा कैरियर खराब तो नहीं हो जायेगा।



    बात उन दिनों की है जब लोग पैदल बारात जाया करते थे। कारण यह था कि उस  समय आज जैसे साधन शिकारी नहीं हुआ करते थे। सभी लोग अपने घरों में बारात की तैयारी मे लगे हुए थे। किसी - किसी के घर पर बच्चे भी बारात जाने की जिद कर जोर-जोर से  रो रहे थे।  छलकू भी नये - नये बस्त्र पहनने के लिए उलट रहा था। अभी वह नहाये नहीं था क्योंकि उसके तन पर पीली - पीली हल्दी लगी हुई थी। दुःख इस बात की थी कि बारात बरसात के दिन मे पड़ गयी थी। बारातियों के मन को बारिश का भय धूमिल किया करता था पर अब तो बारात जानी है तो जानी है। देर बारात विदा होने मे ही हो गयी थी। सूरज डूब रहा था तब बारात गाँव से निकली। आज छलकू के खुशी का ठिकाना न रहा, क्योंकि जो वह पालकी मे सवार था। वह पालकी मे बैठा मुस्करा रहा था और बाकी बारती पैदल चल रहे थे। गाँव के बाहर डिवहार के स्थान पर पालकी रुकी तथा छलकू असीम ख्वाब लेकर डिवहार बाबा के पैर छूकर मिन्नते मानी तथा सभी लोग सभी बारातियों के एकत्रित होने के लिए इंतजार करने लगे।

इधर हीरा पहलवान तथा बड़का बाबू (राम लगन पाण्डेय) भी बारात के तैयारी मे लगे हुए थे पर तैयारी पूरी नहीं हो रही थी। कुर्ते बारम्बार उल्टे जा रहे थे कि कल मर्याद में पहनने के लिए कौन अच्छा पड़ेगा। पहलवान भी एक लाल कुर्ता गगरी मे रखे थे जिसे उनके भाई महात्मा मोहनदास जी ने लाकर 17 वर्ष पहले दिया था और कहा - हीरा यह बड़ी अच्छी अल्फी हनुमान गढ़ी के भण्डारे मे मिली है इसे कहीं आने - जाने के लिए रख लो। पहलवान बिना देर लगाये उसी वक्त उसे (अल्फी को) एक गगरी में डाल दिए। आज उस समय का अल्फी पहलवान को पहनने का शुभ अवसर प्राप्त हुआ। उस पर इतनी सिलवटें पड़ी थी गिनना मुश्किल था। पहलवान बड़े बाबू के दरवाजे पर जाकर धमक गये। बाबू बहुत लेट हो रहा है सभी बाराती हमी लोगों का इंतजार जार कर रहे हैं। ठीक है बाबू ने कहा और दोनों लोग चल दिये।

           इधर सारे लोग परेशान थे आखिर बड़का बाबू और पहलवान की जोड़ी कहां रह गयी। अंधकार धीरे-धीरे पाँव पसार रहा था। बारातियों के सुरक्षा की जिम्मेवारी पहलवान पर ही है और आकाश मे काले-काले बादल घुमड़ रहे थे कि वो भी बारातियों के स्वागत में जल सिंचाई करने की सोंच रहे थे। बिजली कभी - कभी ऐसी कौंधती थी कि एकदम प्रकाश फैल जाता था, उसके बाद फिर घुप्प अंधकार। किसी ने कहा - लो पहलवान आ गये। पहलवान बोले - बाबू हम आ गये हैं चलो तो सबने कहा कि पहलवान आप आगे - आगे चले पीछे पूरी बारात चलेगी क्योंकि रात का माजरा है कहीं कोई जानवर न आ जाय। पहलवान ने कहा - सभी लोग आओ यह कहकर आगे हो लिए हमारे रहते किसी का बाल बांका नहीं होगा ऐसा उन्होंने कहा। पहलवान का सोंटा बड़ा भारी भरकम था और बारबार कहते भी थे की मेरी लाठी जमीन नहीं रोक पायेगी सीधे वासूनाग के फंड पर रुकेगा।  चौकन्ना होकर पहलवान चल रहे थे बारात पीछे कुछ दूरी पर आ रही थी। पगडंडियों का रास्ता था जिससे जल्दी सभी लोग पहुंच जाय। बारात उस गांव के लगभग पास पहुंच ही गयी थी कि पहलवान बड़े जोर से चीखे - खबरदार सभी रुक जाओ आगे खतरा आ गया यह सुनकर सभी लोगों की सांसे रुक सी गयी और धड़कन बहुत तेज हो गयी कि कैसा खतरा है।
पुनः हीरा पहलवान बोले डरने की जरूरत नही सामने बड़ा भयंकर भैंसा खड़ा है उसे अभी ताड़ देता हूँ इतना कहकर कावा काटकर भयंकर लाठी भैसें के ऊपर छोड़ दिया, ठांय की आवज हुई अब क्या था पहलवान पचासों लाठी छोड़ चुके पर भैंसा टस का मस नहीं हुआ। तब पहलवान बोले भैंसा भयंकर है सारी लाठी सींग पर रोके जा रहा है और यह कहते हुए लाठी धुनके जा रहे थे ठांय-ठांम-ठांय की आवाज पूरे क्षेत्र मे फैल गयी। तभी एक आदमी दूर से चिल्लाया अरे भाई पंपिगसेट है तोड़ने से क्या पाओगे तब जाकर पहलवान की लाठी बंद हुई। तब तक वह आदमी भी रोशनी लेकर आ गया देखा मशीन का बैंड टूटकर जमीन पर गिर पड़ा था, टंकी पूरी बिटुर गयी थी हेड फटकर गया था मालिक सर पर हाथ धरके बैठ गया क्योंकि मशीन दुबारा चलने लायक रही कहां। उधर हीरा पहलवान पसीने से डूब गये थेऔर हांफ रहे थे वो भी कुछ बोला नहीं क्योकि उसी के गाँव के बाराती ठहरे। सभी लोग वहाँ पहुंचे तथा शादी धूम से हुई और चाँद सी दूल्हन पालकी में बैठकर कर घर आयी। छलकू के खुशी का ठिकाना न था।

स्व लिखित                          ।। कविरंग।।
                        पर्रोई - सिद्धार्थ नगर( उ0प्र0)

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