Hajari prasad dwivedi / हजारी प्रसाद द्विवेदी
अनामदास का पोथा.. Anamdaas ka potha upanyas
1) "मुझे लगता है बेटा, जिसे लोग आत्मा कहते हैं वह इसी जिजीविषा के भीतर कुछ होना चाहिए।...आत्मा अज्ञात, अपरिवर्तित संभावनाओं का द्वार है। अगर संभावना नहीं होती तो जिजीविषा भी नहीं होती"
2) महर्षि औषस्ती हज़ारी प्रसाद द्विवेदी के किस उपन्यास के पात्र हैं - अनामदास का पोथा
अशोक के फूल.. ashok ke fool nibandh
"मनुष्य की जीवनी शक्ति बड़ी निर्मम है, वह सभ्यता और संस्कृति के वृथा मोहों को रौंदती चली आ रही है।...शुद्ध है केवल मनुष्य की दुर्दम जिजीविषा(जीने की इच्छा)।"
कुटज.. kutaj nibndh
दुख और सुख तो मन के विकल्प हैं। सुखी वह है जिसका मन वश में है, दुःखी वह है जिसका मन परवश है।
बाणभट्ट की आत्मकथा banabhatt ki atmakatha
1) "मानव देह केवल दंड भोगने के लिए नहीं बनी है, आर्य! यह विधाता की सर्वोत्तम सृष्टि है । यह नारायन का पवित्र मंदिर है।"...कथन किस कृति से है।
2) "इस नरलोक से लेकर किन्नर लोक तक एक ही रागात्मक हृदय व्याप्त है"।
हिंदी साहित्य की भूमिका
हिंदी साहित्य को भारतीय चिंता के स्वाभाविक विकास के रूप में हज़ारी प्रसाद द्विवेदी किस पुस्तक में स्वीकार करते हैं।
हिंदी साहित्य : उसका उद्भव और विकास
किस ग्रन्थ में द्विवेदी जी आदिकाल से लेकर आधुनिककाल के प्रगतिवाद तक की चर्चा अपनी पुस्तक में की है।
हिंदी साहित्य का आदिकाल
उस पुस्तक का नाम बताइये जो बिहार राष्ट्रभाषा परिषद के तत्वावधान में दिए गए पांच व्याख्यानों का संग्रह है।
मध्यकालीन बोध का स्वरूप
पंजाब विश्वविद्यालय में दिए गए व्याख्यानों का संकलन किस पुस्तक के रूप में आया -
हजारी प्रसाद द्विवेदी के मुख्य कथन hajari prasad dwivedi ke kathan
"भाषा पर कबीर का जबरदस्त अधिकार था। वे वाणी के डिक्टेटर थे। जिस बात को उन्होंने जिस रूप में प्रकट करना चाहा है उसे उसी रूप में भाषा से कहलवा लिया-बन गया तो सीधे सीधे, नहीं तो दरेरा देकर" ।
"पंडित मैं बनना जरूर चाहता हूं परन्तु ठूंठ पंडित नहीं, जीवंत, सरस, गतिशील।"
"सारे मानव-समाज को सुंदर बनाने की साधना का ही नाम साहित्य है"...
हज़ारी प्रसाद द्विवेदी ने कुल कितने उपन्यासों की रचना की - 04
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