Kahani ulajhan
कहानी उलझन
"मैं आपको चाहने लगा हूं ।आपकी याद आ रही थी इसलिए इतनी रात को फोन किया ।आपको बिना बताए नींद ही नहीं आती मुझे," कहकर फोन काट दिया था उसने। तीन महीने पहले जिस रिश्ते की शुरुआत सामान्य औपचारिक बातचीत से हुई थी वह आज एक नया मोड़ ले चुका था। स्तब्ध रह गई थी विनीता यह सुनकर ।राहुल तो कह कर फुर्सत हो चुका था लेकिन वह गहरी सोच में डूबती चली गई।लगभग तीन वर्ष पहले एक दिन ऐसे ही सोशल मीडिया की अच्छाई बुराई पर परिचर्चा करते-करते बेटी ने उसका यह कहते हुए फेसबुक अकाउंट बना दिया था कि देखिएगा इससे आपके बहुत से कॉलेज के मित्र और पुराने छात्र मिल जाएंगे जिन्हें आप याद किया करती हैं। मना करती रह गई थी वह,डर जो समाया था इससे गलत उपयोग को लेकर।इसके दुष्परिणाम वह आए दिन समाचार पत्रों और टीवी कार्यक्रमों में देखा करती थी।खैर, उसकी बेटी की बात सच निकली और बहुत से पुराने मित्र तथा छात्र जुड़ते चले गए। व्यस्तता के चलते इस ओर ज्यादा ध्यान नहीं गया कभी कभार मैसेज देख लिया करती थी।
विद्यालयीन शिक्षा पूर्ण करके बेटी उच्च शिक्षा के लिए दूसरे शहर चली गई।अब उसके पास नौकरी के अतिरिक्त कोई विशेष कार्य नहीं था।खाली वक्त काटे नहीं कटता था इसलिए लेखन कार्य और सोशल मीडिया की ओर रुख किया।राहुल से उसकी जान पहचान फेस बुक के माध्यम से ही हुई थी। फेसबुक पर मित्र अनुरोध आते रहना कोई नई बात नहीं थी लेकिन अच्छी तरह से गहन छानबीन और mutual friends की सूची देखकर उसकी पोस्ट को खंगालने के बाद ही अनुरोध स्वीकार करती थी। उसमें भी यही प्रयास रहता कि जिस व्यक्ति की फ्रेंड रिक्वेस्ट स्वीकार कर रही है वह जान पहचान वाला ही हो। इसलिए अधिकांश अनुरोध पड़े ही रह जाते थे ।समय बीतने के साथ-साथ कुछ अजनबी लोग भी जुड़ते चले गए ।इन्हीं में से एक शख्स था "राहुल"। गुड मॉर्निंग, गुड -नाइट ,हाय -हेलो से पसंद -ना पसंद पर चर्चा प्रारंभ हुई और बातों का सिलसिला यूं ही चल निकला। एक दिन उसने व्हाट्सएप नंबर मांगा और न जाने क्यों विनीता उसे मना नहीं कर पाई ।यद्यपि इससे पहले भी कुछ फेसबुक मित्रों ने उससे संपर्क नंबर लेने का प्रयास किया था लेकिन सुरक्षा की दृष्टि से उसने सिरे से नकार दिया था।
दोनों की उम्र में काफी अंतर था ।लेकिन जब बात दिल की खुशी और विचारों की हो तो उम्र काफी पीछे छूट जाती है ।यही विनीता के साथ भी हो रहा था। वह यह अच्छी तरह से जानती थी कि राहुल और उसके बीच उम्र का फासला बहुत है लेकिन फिर भी लाख कोशिशों के बाद भी वह राहुल की ओर खिंची चली जा रही थी। उसका हंसमुख स्वभाव, उसकी केयरिंग बातें ,आवाज की कशिश ,उसकी हर बात पर यकीन करने को मन करने लगा था। उसे अब राहुल के फोन और उसके मैसेज का इंतजार रहने लगा था। होता भी तो क्यों नहीं? वह इतने कम दिनों में ही उसे इतना समझने जो लगा था। जो बातें विनीता किसी से न कह पाती थी न जाने क्यों राहुल से बेझिझक कर लेती थी। दोनों खुश थे लेकिन अचानक राहुल के मैसेज आने बंद हो गए ।एक दो बार विनीता ने मैसेज और कॉल किया लेकिन कोई उत्तर नहीं मिला। विनीता का मन बेचैन हो उठा आखिर क्या बात हो गई? राहुल ने उसे फोन या मैसेज क्यों नहीं किया? इसी उधेड़बुन में कुछ दिन बीत गए किंतु उसके बाद उसने स्वयं को कविताओं और कहानियों में व्यस्त कर लिया। धीरे धीरे विनीता के दिलो-दिमाग से राहुल का ख्याल धुंधला होता गया।
फ्रेंडशिप डे के कुछ दिन पहले अननोन अज्ञात नंबर से व्हाट्सएप पर एक मैसेज आया हेलो मैं राहुल हूं क्या मैं आपको याद हूं मैसेज पढ़ कर दिल ने खुशी और नाराजगी की मिश्रित प्रतिक्रिया व्यक्त की और उंगलियां उत्तर लिखने को चल पड़ी," मैं अपने दोस्तों को कभी नहीं भूलती ।"उलाहना का दौर प्रारंभ हुआ। लेकिन उसके बिना कुछ कहे अचानक गायब हो जाने का जो कारण बताया उससे विनीता का गुस्सा रफूचक्कर हो गया। दरअसल एक दिन ऑफिस से लौटते समय उसका एक्सीडेंट हो गया था और यह बात बता कर वह विनीता को परेशान नहीं करना चाहता था। हालांकि इस बात पर विनीता ने घोर नाराजगी व्यक्त की कि उसने उसे यह सब क्यों नहीं बताया और परायो जैसा व्यवहार किया। राहुल और विनीता एक बार फिर सामान्य होकर बातें करने लगे धीरे धीरे राहुल कब विनीता के जीवन का अहम हिस्सा बन गया उसे पता ही नहीं चला वह इस उलझन में थी कि आखिर दोनों के बीच पनपते रिश्ते को वह किस परिभाषा में बांधे ?राहुल एक ऐसा प्रेरणा स्रोत बन कर विनीता के जीवन में आया था जिसकी बातें उसकी रगों में नवचेतना का संचार करती थी ।पति से संबंध विच्छेद के बाद उसने स्वयं को अपनी नौकरी और अपनी बेटी की परवरिश तक सीमित कर लिया था। दूसरे विवाह का विचार तक कभी नहीं किया ।मन खिन्न हो चुका था वैवाहिक जीवन से। हां, खालीपन अवश्य था कि काश जीवन में कोई तो ऐसा होता जिससे वह अपने मन की बात बोल पाती ।क्योंकि कुछ बातें ऐसी भी होती हैं जिसे बच्चों के साथ शेयर नहीं किया जा सकता है ऐसे में राहुल मिला जिससे वह अपने मन की बात कह लेती थी। वह भी उन बातों को ध्यान से सुनता, उनमें रुचि दिखाता ।कई बार विनीता ने राहुल के आकर्षण को महसूस किया था। लेकिन मन का वहम समझकर नकार दिया करती थी।वह उसमें केवल एक सच्चा साथी तलाशती थी। उसकी प्रेम भरी बातों को वह हमेशा हंसी में टाल दिया करती थी ।लेकिन आज यह राहुल ने क्या कह दिया था? क्या यह वाकई प्रेम था? या केवल शारीरिक आकर्षण ?या एक जिद किसी को पा लेने की। और उसके बाद क्या ?रिश्ते का यह रूप जिसका कोई भविष्य नहीं है स्वीकार कर पाएगी वह ?क्या स्वयं को एक ऐसे रिश्ते में बांध पाएगी जिसे समाज के आगे स्वीकार करने की हिम्मत न तो उसमें है और न राहुल में। शायद नहीं ,तो क्यों न इसे दोस्ती तक ही सीमित रखा जाए।विनीता मन ही मन एक निर्णय ले चुकी थी।राहुल को भी इसे स्वीकार करना ही होगा सोचते सोचते कब उसकी आंख लग गई पता ही नहीं चला।
दरवाजे पर दस्तक से तंद्रा भंग हुई देखा तो दूध वाला खड़ा था। दूध लेकर गैस पर गरम करने के लिए रखा और दूसरी ओर चाय भी चढ़ा दी क्योंकि सिर भारी हो रहा था लेकिन मन की उलझन सुलझ चुकी थी।
प्रेषक : कल्पना सिंह
पता : आदर्श नगर, बरा, रीवा (मध्य प्रदेश)
No comments:
Post a Comment