लघु कथा
प्रेम भरी खिचड़ी
ठंड भरा पूस का महीना रविवार का दिन था। सुबह पति ने पत्नी से कहा आज तो छुट्टी का दिन है। कुछ देर और सो लें। पत्नी बोली आपकी इच्छा मैं तो
जा रही अपने काम निपटाने पत्नी अपने काम में जुट गई। थोड़ी देर बाद ही पति देव भी उठ कर स्वच्छ हुए और स्वच्छ पानी से स्नान करने के बाद पत्नी से बोले प्रिय बहुत ठंडी लग रही है।एक प्याला चाय की इच्छा थी। पत्नी ने अदरक की गर्म कड़क चाय पति के समक्ष प्रस्तुत किया और काम में लग गयी। पति देव अख़बार का आनंद लेने लगे।
चूंकि घर के काम में व्यस्त पत्नी का ध्यान भोजन की तरफ नही गया धीरे-धीरे सुबह के दस बज रहे थे। पति को भूख लगी। उन्होंने श्रीमती जी को बुलाया और कहा कि भोजन की इच्छा प्रबल हो रही है। कुछ पूड़ी, कचौड़ी, दाल, चावल, सब्जी रायता आदि बना लो। पत्नी रसोई घर में गयी और उसे याद आया कि चाय बनाते समय गैस की लौ लाल रंग की होरही थी। अतः गैस भी कम है। इससे पहले वह उरद की एक मुट्ठी दाल कूकर में डाल चुकी थी। वह सोचने लगी कि एक ही कूकर गैस पर चढ़ सकता है और कड़ी ठंडक में अपने प्रीतम को मैं गैस एजेंसी तक कैसे भेजूं।
अब उस भीगी उरद की दाल में एक कटोरी
चावल वह नमक डालकर गैस पर चढ़ा दिया। मजे की बात यह है कि जब वह चाय बनाने गयी थी तब उसने जो अदरक कुचकचाया था उसे उस कूकर में ही कूचा था और जल्दबाजी में पूरा अदरक चाय में नही डाल पाई थी।
कुछ ही देर बाद वह व्यंजन तैयार हो गया थाली में परोस कर पति के सामने रायता और चटनी के
साथ प्रस्तुत किया। पति ने कहा कि भाग्यवान यह कौन सा व्यंजन है। पत्नी मधुर स्वर में बोली पहले आप इसे खाकर देखे कैसा है फिर नाम करण कर लिया जाएगा।
पति ने ज्यों ही खाया उसे बहुत ही अच्छा लगा। वह बोला बहुत ही स्वादिष्ट व्यंजन है। अब नाम बता दो
पत्नी बोली मै बहुत हिच खिच में थी। नाम मुझे भी नही पता। पति ने कहा कैसी हिच खिच री प्रिय। यह सुनकर पत्नी बोली यह #खिचड़ी है प्रीतम प्रेम की, उत्साह की,
विश्वास की, सच्चाई की, सच्ची लगन की,अच्छी सोच की
इंसानियत की उदारता की, दान की, धर्म की, मर्यादा की ।
लेखक
प्रमोद साधक रमपुरवा
रिसिया बहराइच उत्तर प्रदेश
पिता का नाम श्री बुद्ध सागर वर्मा
ग्राम रमपुरवा, रिसिया
जनपद बहराइच उत्तर प्रदेश
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