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रिक्शावाला की ईमानदारी Rikshawala ki imandari

लघुकथा :- रिक्शावाला की ईमानदारी 

बात करीब रात दस बजे की आस - पास की है,पूजा राजनगर रेलवे स्टेशन पर विश्वविद्यालय दरभंगा से काम काज निपटा कर आई, काफ़ी रात होने के कारण पूरा जगह सुनसान रहा, न गाड़ी नहीं कहीं आदमी, थोड़ी दूर पर एक रिक्शा रहा, वहां जाकर रिक्शा पर सवार हो गई, और क्या अपने घर चली गई

अपनी बस्ता तो ली पर रिक्शा पर ही काम की काग़ज़ की फाईल छोड़ दी , इस तरह दो दिन बीत गई, पूजा परेशान थी , कि कहां फाईल छोड़ दी, डर के मारे घर वालों को न कह पा रही थी, रिक्शावाला भी अपना रिक्शा लेकर दो दिन में कितने जगह गये आये पर वह फाइल देखा नहीं, फाईल रिक्शा वाला का बेटा देखा उसमें पैसे और रिजल्ट के काग़ज़ सब रहें, दौड़े - दौड़े वह पापा के पास आया, और बोला पापा पापा यह फाईल पूजा नाम की लड़की की है , इसमें पैसे और उसके काम के काग़ज़ भी है, पता न कहां रहती है, क्यों न पापा इस फाइल को पुलिस स्टेशन में दे आये , न बेटा सब पुलिस ईमानदार ही नहीं होता , पैसों रख लेंगे, काग़ज़ कहीं फेक देंगे , कुछ देर हमें सोचने दो हां हां मंगलवार को रात दस के आसपास एक लड़की को स्टेशन के पास ही ले गये रहे, जाकर उसके घर के पास पता लगाता हूं, उस मौहल्ला में जाकर रिक्शा वाला पूछा एक आदमी से यहां कोई पूजा नाम की लड़की रहती है क्या , तो वह आदमी बोला हां क्या काम है मैं ही हूं उसका पिता, रिक्शावाला साहब यह फाईल आपकी लड़की की है , इसमें पैसे और उसकी काम काज की काग़ज़ है, ये लीजिए साहब , फिर रिक्शावाला जाने लगा, तब पिता वैसे कैसे जाते हो , आज के जमाने में तुम्हारे जैसे ईमानदार कहां, अपनी ईमानदारी की परिणाम तो लेते जाइए, कल से आप हमारे कार्यालय में काम करने आइये ,फिर क्या रिक्शावाला का जीवन अन्धेरा से रोशन हो गया, जो रिक्शा चलाकर महीने में पाँच हजार भी नहीं कमा रहे थे,वह अब महीने के पन्द्रह हजार कमाने लगे, कैसे तो ईमानदारी के कारण ।
 रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज कोलकाता भारत

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