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कविता से मोहब्बत हुआ kavita se mohabbat hua

कविता से मोहब्बत हुआ


दुख दर्द चिंता से जब निकट हुआ ,
पूजा पाठ धर्म-कर्म से न ,
जब अपने से दिक्क़त हुआ !
तब हम रोशन को राह पर चलने का हिम्मत हुआ,
क्योंकि उसी वक्त हमें कविता से मोहब्बत हुआ !
हार हुआ जीत कहीं कभी इज़्ज़त हुआ ,
कविता के प्रति तभी क़ीमत हुआ !
तब देर सारी कविता का लिखा हुआ पत्र हुआ ,
कब ?  जब कविता से मुझे मोहब्बत हुआ !
तब आस-पास में हमारी कहावत हुआ ,
तो कभी राजनीतिक,तो कभी
प्रकृति चित्रण पर हमारी लिखावट हुआ !
इस तरह हमारी अपना साहित्य में एक तट हुआ ,
कोई छोड़कर गयी, पर कविता से हमें अनेक
मोहब्बत हुआ !
न मिलने के वक्त भी मिलने की मुहूर्त हुआ ,
दिन दुपहरिया जब तब कविता के लिए नई- नई
शब्द की निर्गत हुआ !
जो हुआ हकीक़त हुआ ,
क्या बताऊं इतनी गहराई से हमें कविता से
मोहब्बत हुआ !
बाल-बच्चा नहीं, उसके जगह , कविता पर पाठकों से
आये कथनों से मैं सहमत हुआ ,
कि यही मेरा बूढ़ापा का साथी, अभी तक न मेरा
जीवन दुर्गत हुआ !
दुर्गत के जगह मेरा जीवन कुपंथ से सुपथ हुआ ,
कब ? जब हमें कविता से बेधड़क मोहब्बत हुआ !
रात में भी बिस्तर पर प्रियतम की तरह कविता के
शब्द प्रकट हुआ ,
डूबे रहे कविता में, घर परिवार के प्रति प्रेम सख़्त हुआ !
कविता के कारण ही डर हटा, और सही के लिए
लड़ने का ताक़त हुआ ,
इस तरह यारों हमें कविता से मोहब्बत हुआ !

                   रोशन कुमार झा 
             सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज
                 कोलकाता

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