शीर्षक :- तुम याद आते हो
कुछ इस तरह याद आते हो फिर आकर चले जाते हो।
जब कुछ गुनगुनाती हुँ मैं फिर तुम नजर आते हो।।
कभी दर्द बनकर दिल दुखाते हो, फिर सांस बनकर खुशी बन जाते हो।
मेरी धड़कन भी चाहती हैं कभी गूँजो तो इस तरह ।
ना निकल सके ना छुप सके वो आँशु बन जाते हो।
कभी दूर जाकर कभी पास आकर ,तुम याद आते हो अक्सर याद आते हो।।
रचनाकार
पवन कुमार सैनी
शिक्षक एवं साहित्य प्रेमी
अलवर ,राजस्थान
क्या बात हैं !! बहुत खूब 💐💐💐👌👌
ReplyDeleteबहुत बढिया कविता है, बहुत मधुर है़।
ReplyDeleteKeep it again. Sir ji
ReplyDeleteBahut Nadiya sir��������������proud of u��
ReplyDeleteBahut badiya sir ji🙏🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteबहुत खूब गुरु जी....
ReplyDeleteगज़ब
ReplyDeleteबहुत अच्छा
आप सभी का दिल की गहराइयों से स्वागत
ReplyDeleteअति सुन्दर
ReplyDeleteअद्भुत 👌 👌 कल्पनातीत 🙏 💐 💐 जय हिंद 🇮🇳जय जवान 🙏
ReplyDeleteआपका आभार
DeleteLikhte rho very nice
ReplyDeleteशुक्रिया
DeleteRising poet
ReplyDeleteIt's real sir
DeleteWelcome all
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteबहुत सुंदर
Saandar bhai shab
ReplyDeleteJi sukriya
DeleteTahe Dil se aabhar guruji excellent poem
ReplyDeleteआपका भी महोदय
Deleteकुछ इस तरह से याद आते हो तुम
ReplyDeleteक्यों पास आकर दूर जाते हो तुम
कुछ इस तरह मनमानी जताते हो तुम
क्यों ना नज़दीक आकर गले लगाते हो तुम
पवन जी बहुत अच्छा लिखते हैं आप।
चंद पंक्तियों से समीक्षा की है।
इसी तरह बढ़ते रहिए।
पूनम भाटिया
आपके भी आभार इस स्नेह के लिये
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