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औरंगाबाद रेल हादसा पर कुछ दोहा Aurngabad rail hadsa

औरंगाबाद रेल हादसा पर कुछ दोहा

                        (1)
150 रोटियां और एक टिफिन चटनी लेकर चले थे 20 मजदूर, 

16 के लिए आखिरी सफर बन गया ,
हम रोशन लिखते कुछ और , 

पर लिखने के लिए तो बदल मन गया !!
                        (2)
महाराष्ट्र से जाना रहा मध्य प्रदेश ,
औरंगाबाद जाते-जाते सोलह तो हो गये शेष !!
                           (3)
सड़क मार्ग से जाते तो पुलिस, रेलवे स्टेशन पर रूकते तो
आर .पी , एफ मारते डंडा लेते पैसा ,
कोरोना से बचे ,भूख से बचे, पर मौत से बचा न पाये
प्रभु!, लीला है आपका कैसा !!
                              (4)
जाना रहा उन लोगों को घर, पर पार भी न कर पाए औरंगाबाद ,
जीते जी सुविधा नहीं, सरकार क्या देंगे सुविधा मरने के बाद !!
                            (5)
बाल बच्चें , और इंतजार में रहीं होगी वह नारी ,
कट गये मालगाड़ी से , आये न ब़ाग के माली !!

                             (6)
कट कर अलग हुआ हाथ पाँव ,
इतने दूर चलने के बाद भी पहुंच न पाये अपना गांव !!

                               (7)
तुम सरकार क्या करोगे ग़रीबों का मदद ,
तुम्हें तो प्यारा है अपना पद !!
                                (8)
दूरी बनाकर ट्रेन चलाये होते,तो सारे के सारे प्रवासी
मजदूर घर पहुंचे होते सही सलामत ,
आज मरने के बाद दे रहे हो उनका कीमत !
                                  (9)
न रेलगाड़ी, बैलगाड़ी ही सही, पहले लोग आते-जाते थे
न रेल के बिना ,
राजतंत्र ही ठीक रहा, लोकतंत्र में आते गए व होते गये
एक से एक कमीना !!
                                     (10)
घर-परिवार को भले कुछ मिले, पर हमें विश्वास है न
कि तू सरकार दे पायेगा रुपया पांच-पांच लाख ,
खुली आंखें न, नींद में आंखें बंद, तब तू मौत आया होने भी दिया न उन बेचारों को अवाक् !!

                 
 रोशन कुमार झा 
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज , कोलकाता 
রোশন কুমার ঝা, Roshan Kumar Jha

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