बचपन
मिट्टी का घरौंदा हवेली से न्यारा था,
वो वर्षा का इंतजार प्यारा था।
बिन भूख-प्यास की चिंता के खेल न्यारा था,
वो नादाँ बचपन कितना प्यारा था।।
वो माँ से माखन की जिद्द करना न्यारा था,
वो माँ का हाथ से खिलाने में दुलार प्यार था।
वो नादाँ बचपन कितना प्यारा था।।
वो गांव-गुवाड़ में सखा संग संगीत न्यारा था,
वो दादी माँ की लोरी सुनाना प्यारा था।
वो नादाँ बचपन कितना प्यारा था।।
मूलाराम माचरा
शिक्षक
बायतू,जिला-बाड़मेर
राजस्थान
वर्षा 💐💐
ReplyDeleteआखीर वर्षा के दीदार हो गए सर आपको शब्दों के जरिये।
DeleteNice sir ji
ReplyDeleteThanks
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