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कोरोना एक सबक corona ek sabak

कोरोना एक सबक

कोरोना एक सबक है
इंसान के लिए
उसके अस्तित्व के लिए

जो प्रकृति को छेड़ेगा
बच नहीं पाएगा
लाचार होगा
बेवश होगा
पर......
कुछ कर नहीं पाएगा।

छटपटाएगा, तड़पेगा
और 
आंसू बहाएगा।

इंसान खुश होता था
मैंने प्रकृति पर 
विजय प्राप्त कर ली है
वश में कर लिया है इसे
किंतु.....
कितना झूंठा दंभ था यह
प्रकृति को न किसी ने 
जीता है
और न 
जीत पाएगा।

समय आएगा
समय जाएगा
यह प्रकृति का नियम है
किंतु
समय की गति को कोई 
रोक नहीं पाएगा।

चाहे इंसान कितने भी परमाणु बम बनाले
चाहे धरती का सीना चीर डाले
अंतरिक्ष में भी
कितना ही विचरण करले
कितने ही जंगलों को
वीरान कर दे।

ईश्वर की बनाई सृष्टि
के जीवों को
जिंदा खाएं या भून कर
हवा में चले
या तेज गति से
सड़क पर।

किंतु एक दिन .....

प्रकृति अपना रूप,अपनी ताकत
इंसान को दिखाती है

कभी जलजला बनकर
कभी सुनामी
तो कभी 
तूफान बनकर।

वह महामारी बन जाती है
अपनी उष्णता भी दिखाती है।

तब इंसान........! 
लाचार होता है
उसे कुछ आभास होता है
अपनी लघुता का
अपनी बेवशी का।

परन्तु.......

वह भूल जाता है
सब कुछ भूल जाता है
फिर से नया दंभ पाल लेता है
अपनी शक्ति का
अपनी विवेकशीलता का
अपनी बुद्धि का।

                    रचना
            कांति प्रसाद सैनी
           ( वरिष्ठ अध्यापक)
          जनूथर डीग भरतपुर

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