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पहलवान पर कविता kavita pahalwan

पहलवान  

बता रहा हूं समाज की कुछ लोगों की अभियान ,
कमजोर पर दिखाते शान ।
पहले खाते फिर करते स्नान ,
डरा धमकाकर जीते है पहलवान ।।

कुछ पल के लिए खो बैठते ध्यान ,
उजाड़ते कई घर , लेते कितने के प्राण ।
दानी भी है , करते पुलिस और प्रशासन
व्यवस्था के पास दान ,
और कहलाते पहलवान ।।

डरा - धमका कर पाते मान सम्मान ,
दिखाते रोशन मार्ग अंधेरा करके कि हम
किये है कल्याण ।
अधिकांश रहता झुठी बखान ,
डर के मारे हम जनता हाँ में हां मिलाते
क्योंकि वह हैं पहलवान ।।

बोतल के बोतल शराब, मुंह में रखते पान ,
गुण्डा गर्दी दिखाकर मजदूर बेचारों से छीन लेते धान ।
थाना में मजदूर की फैसला कहां , उल्टे पकड़वाते कान ,
क्योंकि जेब तो भर रहे हैं पहलवान ।।

रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज कोलकाता भारत 

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