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लोकडॉउन पर कविता lockdown Par kavita

लोकडॉउन

इस लॉकडाउन में .......
 सीख रही हूं मैं..! 
कागज़ पर पेंसिल से 
कुछ आकृतियां उकेरना.. 
कल्पनाओं के आकाश में
पर लगाकर ऊंची उड़ान भरना..
बेतुकी सी आवाज में
संगीत गुनगुनाना..
पौधों को शैशवावस्था से
परिपक्व रूप तक ले जाना..
रंग बिरंगी पतंगों से
धरा आकाश को रंगीन बनाना
इस लॉकडाउन में
सीख रही हूं मैं...! 
स्वजनों के आगमन की
आहट व पदचाप पहचानना..
वस्तु के विकल्पों की
तलाश जारी रखना..
नियमों व अनुशासन के
बंधनों में स्वयं को बांधना..
सीमित संसाधनों में
जीवनयापन करना..
खुद घरों में कैद होकर
पक्षियों की परतंत्रता को समझना.. 
इस लॉकडाउन में
 सीख रही हूं मैं...! 
भावनाओं के ज्वार की
थाह को मापना..
सागर में गोते लगाते हुए
स्नेह को किनारे पर लाना..
राम की मर्यादा व
सीता का सतीत्व समझना..
सूनी पड़ी दीवारों से
चुपके से गुफ्तगू करना..
 चींटी के नन्हें पैरों से
मीलों की दूरी को नापते हुए देखना.. 
इस लॉकडाउन में
 सीख रही हूं मैं...! 
अंतर्मुखी से बहिर्मुखी 
होने का हुनर विकसित करना..
एंद्रिक जाल में फंसकर
भी बाहर निकलना..
शांत मनस में विचारों का
आवागमन जारी रखना..
पारिवारिक जिम्मेदारियों
का अहसास करना.. 
विपरीत परिस्थिति में 
भी खुश रहना.. 
इस लॉक डाउन में
 सीख रही हूं मैं..!
बरसों पुरानी यादों पर
 से जमी धूल हटाना..
अपने छुपे हुए हुनर
को फिर से तराशना.. 
किताबों के पन्नों पर
लिखे शब्दों को वाचना .. 
तपती हुई रेत की तपन
बारिश की बूंदों को निहारना ..
देश के कर्मवीर व मुखिया 
के कर्तव्य को समझना.. 
इस लॉकडाउन में
सीख रही हूं मैं.......!


अंजू अग्रवाल ( खेरली,अलवर)

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