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नारी (Naari) कविता लक्ष्मी तिवारी

नारी

नित्य नारी प्रीत की
संकल्पना को स्वीकार
दुदुंभी बजा दुष्टों को
रण में ललकार
स्वप्न के आशियानें से निकल
जीत की डगर पर आगे
बढ़ रही हैं नारी आज
हासिल की दौड़ में
मर्यादा की घूंघट ओढ़
शर्म के लिबास को
उतार सरे राह चल
पथिक बन पथ की महत्ता
बढ़ा रही हैं नारी आज
कभी खिड़कियों से झाँक
देख परिंदों को पुचकारती
ललकी निगाहों से उस पीड़न
को स्वीकारती
खुद पंछि बन उड़े
चल रही हैं नारी आज
कभी बेड़ियों में उलझे
ठिठके हुए पाँव को
पसार निज क्षमता को
ऊँची सोच के दरम्यान
विश्व को डगर से रोज
नापती हैं नारी आज
जल रहे थे लहू कभी
कुकृत्यों की आग से
उस लहू को पानी बना
आग को बुझाती
प्रेम की धधक में खुद को
जलती हैं नारी आज
सर्वाधिकार सुरक्षित
लक्ष्मी तिवारी
ग्राम फूलपुर (भगवानपुर)
पोस्ट- जमुनीपुर
जिला- अंबेडकरनगर
राज्य- उत्तर प्रदेश

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