तुम्हारे रूठने से
तुम जो रूठ जाते हो सब छूटने लगता है,
दिल की गहराइयों में दर्द गूंजने लगता है।
क्या खता हुई जो इस कदर खफा हुए,
बस यही सोचते सारा वक्त गुजरता है।
रूठना - मनाना मोहब्बत की बात है,
लेकिन रूठे रहना क्या ठीक बात है?
अब मान भी जाइए जां निकल रही,
इस तरह सताना बहुत गलत बात है।
मोहब्बत के लम्हे मिले हैं नसीब से,
मुझे अब तो जान जाइए करीब से।
थोड़ा तो करम कीजिए इस बदनसीब पे,
नाराजगी को छोड़िए मिलिए तो प्रीत से।
प्रेषक:कल्पना सिंह
पता:आदर्श नगर, बरा, रीवा ( मध्यप्रदेश)
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