नदी की जीवन
पर्वत से जन्म लेती हूं ,
वही रहती मेरी बचपना की उमंग
तीव्र गति से आगे बढ़ती ,
मार्ग में आये बड़े - बड़े पत्थर दूर फेक
फिर आती समतल भाग में ,
नई गति से भागती हूं
अनेक मंदिर, घाटी , ब्रीज ,
को पीछे छोड़ते जाते ।।
उनके मार्ग में कितने
नहरे- नालियां मिलती
सभी को अपनी सहेली बना लेती ,
उसे भी अपने साथ ले जाती
पर्वत से जन्म लेती हूं ,
मार्ग में जीवन बिताती हूं ।
अन्त समय में गति रुक जाती कम
फिर सागर में मोक्ष पा लेती हूं .
रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज कोलकाता
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