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समय की सौगात लायी हैं samasy ki saugat laayi h

समय की सौगात लायी हैं

एक अरसे बाद ऐसी रात आई है,
जो हर किसी का सवाल लायी है।
समय की सौगात लायी हैं
ये खिड़की, ये दरवाजे , ये बिछोना , ये दिवालें कहते हैं ।
ये तू नही ,ये तू नही ।।

मैं चुप सा, स्तब्ध सा, निःशब्द सा
ना इनका कसूर ना इनकी मनमानी,
ना मेरी चली, क्योंकि ये किस्मत ने है ठानी
मैं ना चींख सका ना लड़ सका
मैं सिर्फ इतना ही बोला 
मैं आत्मसमपर्ण कर चुका ।।

मैं वो नही हूँ ,जो हूँ
मैं वो नही था , जो था,
ये समय का चक्र है जो मुझे हरा गया ,,
तू प्रबल है ,तू अटल है , तू सत्य है जो सिखा गया।
मैं हार गया, मैं हार गया।
तू हरा गया एक बार फिर मुझे  हरा गया।।...
रचनाकार
पवन कुमार सैनी
शिक्षक एवं साहित्य प्रेमी
अलवर ,राजस्थान

20 comments:

  1. Kya bt h sir.... proud of u Sir ji��������������

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  2. Kya bt h sir.... proud of u Sir ji��������������

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  3. बहुत ही भावपूर्ण रचना
    आपने अच्छा लिखा है

    पूनम भाटिया

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  4. वाह क्या बात है जी👌👍👌

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  5. ग्रेट सर जी
    स्वागत है आपका 💐💐

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  6. आप सभी का आभार

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  7. कलम पत्रिका का सबसे ज़्यादा

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  8. Wonderful sir g
    Very nice sir g

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  9. बहुत सुंदर भाव,शब्द विन्यास, बधाई

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