समय की सौगात लायी हैं
एक अरसे बाद ऐसी रात आई है,
जो हर किसी का सवाल लायी है।
समय की सौगात लायी हैं
ये खिड़की, ये दरवाजे , ये बिछोना , ये दिवालें कहते हैं ।
ये तू नही ,ये तू नही ।।
मैं चुप सा, स्तब्ध सा, निःशब्द सा
ना इनका कसूर ना इनकी मनमानी,
ना मेरी चली, क्योंकि ये किस्मत ने है ठानी
मैं ना चींख सका ना लड़ सका
मैं सिर्फ इतना ही बोला
मैं आत्मसमपर्ण कर चुका ।।
मैं वो नही हूँ ,जो हूँ
मैं वो नही था , जो था,
ये समय का चक्र है जो मुझे हरा गया ,,
तू प्रबल है ,तू अटल है , तू सत्य है जो सिखा गया।
मैं हार गया, मैं हार गया।
तू हरा गया एक बार फिर मुझे हरा गया।।...
रचनाकार
पवन कुमार सैनी
शिक्षक एवं साहित्य प्रेमी
अलवर ,राजस्थान
Kya bt h sir.... proud of u Sir ji��������������
ReplyDeleteThnks
DeleteKya bt h sir.... proud of u Sir ji��������������
ReplyDeleteThanks ji
Deleteबहुत ही भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteआपने अच्छा लिखा है
पूनम भाटिया
आपका आभार मेंम
DeleteVery good
ReplyDeleteआभार सर्
Deleteवाह क्या बात है जी👌👍👌
ReplyDeleteजी आभार
Deleteग्रेट सर जी
ReplyDeleteस्वागत है आपका 💐💐
स्वागत भाई जी
Delete72een sir g
ReplyDeleteआप सभी का आभार
ReplyDeleteकलम पत्रिका का सबसे ज़्यादा
ReplyDeleteWonderful sir g
ReplyDeleteVery nice sir g
Ji welcome
Deleteबहुत सुंदर भाव,शब्द विन्यास, बधाई
ReplyDeleteजय हो
ReplyDeleteThanks a lot
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