लघुकथा
रफ़्तार और मां की ममता
जिंदगी बहुत ही तेज़ रफ़्तार से दौड़ रही थी। मार्च माह का अंतिम सप्ताह अपनी इस दौड़ में तीव्रता से अपनी शक्ति दिखा रहा था।तब ही अचानक 24मार्च को यह पता लगा कि इस दौड़ को यहीं थम जाना है।भारत और विश्व में एक महामारी ने अपने कदम पसार लिए हैं जिसका नाम कोरोना है। भारत में लाक डाउन का निर्णय लिया गया।अब क्या था जो जहां था वो वहीं पर रुक गया।पर धीरे धीरे लोगों ने अपने अंदाज में अपने आप को घरों में रहकर सुरक्षित रखने का निर्णय लिया।
हां इस लाक डाउन का सबसे सकारात्मक पल माताओं ने महसूस किया। मेरी एक सहेली है जिसकी दो बेटियां हैं दोनों ही नौकरी में व्यस्त थी अचानक इस दौड़ को लाक डॉउन ने रोक दिया था।दोनों की शादी जून में होने वाली थी।पर यह भी रुक गई। मां जो बेटियों की शादी की हर समय चिंता में रहती थी उसे आज सुख महसूस हुआ ।क्योंकि उसे अपनी बेटियों के साथ कुछऔर समय बिताने का अवसर मिल गया ।
मां की भावना के आगे कर्तव्य कुछ देर के लिए थम गए और मां की ममता ने विजय तिलक लगा दिया।
मनीषा व्यास
मां तो सिर्फ मां होती है ।
ReplyDeleteमां आंसुओं की पहचान रखती है
दो दिन पहले भी बहे हों तो जान लेती है।