वृद्धाश्रम की परिवेदना
आरती की जय संतान लला की ,
कष्ट देलन बूढ़ापा कला की ,
जिसके बल से बेटा अफसर बन जावे ,
वही बेटा बूढ़ापा में बाप के निकट न आवे ।
सजनी दूत पुत्र पास जब से आई ,
पतन के तब से विचार लगाई ।।
कहे मां-बाप को वृद्धाश्रम पटाये ,
न तो हम बीबी रह न पाएं ।
यह कैसा नियम है भाई ,
देखे भी न मां बाप को, जब से महारानी आई ।
माता-पिता को वृद्धाश्रम में डाले ,
और कहते बेटा अब वापस आ गए खुशी हमारे ।
बैठी हार, पर कभी न पिता कम हारे ,
पर आज बेटा मान रहे हैं स्त्री के इशारे ।
आएं पूजा वसूल कर पूरा किये इच्छा हमारे ,
कहें ये सब सम्पत्ति है तुम्हारे ।
श्रवण कुमार माता-पिता की सेवा में प्राण उतारे ,
कहें माता-पिता जय जय जय श्रवण प्रिय बेटा हमारे ।
जो संतान माता-पिता को वृद्धाश्रम न पटावे ,
कहें रोशन एक दिन वही बेटा श्रवण कुमार कहलावे ।
✍️ रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज , कोलकाता
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