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बिहार शराब बंदी की धून सारे जनहित मुद्दे भूल Bihar sharab bandi

शराब बंदी की धून सारे जनहित मुद्दे भूल 

Bihar sharab bandi


1 अप्रैल 2015 से बिहार में शराबबंदी को सख्त कानून के साथ लागू किया गया।जिसे सर्वसम्मति से सभी ने सराहा भी था और अपार समर्थन भी दिया था लेकिन बिहार के लिए यह अभिशाप बनेगी यह किसी ने सोचा भी न था।आज तो यह स्थिति है कि जनहित के मुद्दे सारे गायब हो रहे और सिर्फ शराब पर सरकार और विपक्ष सड़क से विधान सभा तक और सोते जागते यही धून बजाते फिर रहे हैं।
Sharab

जहां तक शराब छोडने का सवाल है वह तो कुछ कम अवश्य हुआ लेकिन ड्राय नशा गाजा चरस और स्मैक का आदि आज बिहार का युवा वर्ग हो चला है।किस ओर ले जाना चाहते है बिहार को ।अगर नशा का कारोबार ऐसे फलता फूलता रहा तो वो दिन दूर नही जब यहां के 70% युवा एक गहरी खाई की तरफ धकेले जा रहे हैं।
          

बिहार शराब बंदी Bihar sharab bandi


इस बार मॉनसून सत्र में यह मुद्दा बिहार विधान सभा में छाया रहा जबकि रोजगार मंहगाई और जनहित के मुद्दे प्रायः गायब ही रहे।सरकार से जनता आशा रखती है कि उसके रोजमर्रा के जीवन स्तर के सुधार के लिए सरकार और विपक्ष काम करे न कि शराब और गाजा में सरकारे उलझे।

बिहार में शराब बंदी है। इसके सख्त कानून भी हैं लेकिन यहाँ शराब की कोई कमी नही है।ऐसा हम नही कहते शाम होते नशा करने वाले का जूनून बोलता है। वैसे जगहों को जहा मनमानी रेट पर शराब का गोरख धंधा फलता फूलता है।आखिर इसका प्रश्रय कहाँ और कैसे संभव है। जब तक प्रशासनिक चूक न हो। स्कूल कालेज के बच्चे महिलाएँ धरल्ले से उन माफियाओ का काम कर रही है जो वेरोक टोक मनमाना धंधा चला रहे हैं आखिर कैसे? 

Bihar me sharab bandi बिहार में शराब बंदी

आज बिहार के हर घर में एक स्मगलर पैदा हो गया है विगत चार पाँच वर्ष में  विशेषकर बच्चे?  क्योंकि हमारा राज्य बंगाल,  नेपाल, झारखंड और उत्तरप्रदेश से सटा हुआ है बच्चे उन राज्यों से शराब लेकर अपने गांव शहर में आसानी से बेच रहे हैं जिससे उन्हें अच्छी कमाई होती है। यह कमाई प्रशासन की नजर में भी है पर उसकी मजबूरी भी शायद शराब ही है जो शाम होते ही परवान चढ़ने लगती है और वेडरूम में पहुँच जाती है।

सरकार के स्तर पर काफी प्रयास किए हैं लेकिन दो चार को छोड सभी शायद इसके आदि है जिसकी वजह से इस धंधा को रोक पाना संभव नही हुआ है ।हाँ  कमी और एक डर अवश्य बना है कोई प्रदर्शन नही करता लेकिन आज भी चोरी छिपे लोग पी रहे है।जो प्रशासनिक विफलता और असमर्थता को उजागर करता है।जिसका कारण अपनो का प्रेम या शराब से प्रेम हो सकता है।शराब बंदी एक सार्थक पहल थी। जिसे सभी ने सराहा था,  लेकिन वेतहाशा युवा वर्ग की सक्रियता और तस्करी ने प्रशासनिक मेहनत को फीका कर विवश कर दिया है।जिसमें कोई न कोई अपना रिश्तेदार ही निकल जाता है जो शाम का नशा सुबह उतरने का इंतजार भी करता है।प्रशासन कठोरता के साथ कोमलता भी बरत रही जो इस स्थिति से स्पष्ट होता है ।एक नींव जो 100 रू की है बिहार में 300-400 रू में मिलती है अगर खर्च 100 रू कर दि जाय फिर भी एक नींव पर 200 रू की कमाई होती है स्थानीय प्रशासन का अथवा बिना किसी मिली भगत का ऐसा घिनौना मजाक भला सरकार या प्रशासन कैसे कर सकती जिसमे सारे युवा स्मगलिंग कर सके ।ऐसे बंदी से वेहतर है ऐसे सरकारी दूकान खुलवाये जाएँ जहा सरकारी रेट पर एक सीमित मात्रा में शराब पीने वाले को मिल सके।ताकि युवा तस्कर न बनकर अपना  भविष्य दूसरी ओर ले जाएँ ।
                                
                                लेखक - आशुतोष 
                                 पटना बिहार

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